Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 551
________________ श्रीकल्प सूत्र ॥५३५॥ चित्राणि तेषां स्थान स्थितिः यस्यां ताम, तथा-ईहामृग-पम-तुरग-नर-मकर-विहग-व्यालक-किन्नर-हरुशरभ-चमर-कुञ्जर-वनलता-पद्मलता-भक्तिचित्राम्-तत्र-ईहामृगोवृकः, वृषभ: बलोवईः, तुरगः अश्वः, नरः मनुष्यः, मकरो जलजन्तुविशेषः, विहगः-पक्षी, व्यालकः सर्पः, किन्नरो व्यन्तरविशेषः, रुरु: मृगविशेषः, शरभः= अष्टापदः, चमरः आरण्यो गौः, कु जरो-हस्ती, वनलतापनोत्पादिलता-मालतीयधिकादिवल्ली, पद्मलता कमलिनी चेत्यासां या भक्तयो-रचनाविशेषास्ताभिश्चित्राम् अनुताम् , तथा-मुखचितवरकनकप्रवरपर्यन्तदेशभागाममुखचिताः सम्यग्रचिताः वरकनकैः उत्तममुवर्णैः प्रवरपर्यन्तानां मनोज्ञवस्रान्तानां देशभागा: अवयवा यस्यां ताम् , यद्वा-सुखचितं वरकनकं यत्र तादृशाः प्रवरपर्यन्तदेशभागा यस्यां ताम्-सुवर्णमुगुम्फितमनोज्ञवस्त्रान्तदेशभागयुक्तामित्यर्थः, एतादृशीम् आभ्यन्त कीम् आस्थानमण्डपमध्यवर्तिनीन् जवनिकां कर्षयतिपातयति, कर्षयित्वा आस्तरक-मृदुक-मसूरको-च्छादितम्-आस्तरकम् शय्योपर्याच्छादनवस्त्रविशेषः,मृदुकमसूरक कोमलोच्छीपंक-कोमलशिरोपधानम् , ताभ्याम् उच्छादितम् प्राच्छादितम् , तथा-धवलवस्त्रमत्यवस्तृतम् श्वेतवस्त्राच्छादितं, कल्पमञ्जरी टीका जवनिकावर्णनम् मृग (वन्य पशु), बैल, घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, किन्नर (एक प्रकार के व्यन्तर), रुरु (एक प्रकार के मृग), अष्टापद, चमर (जंगली गाय), हाथो, वन में उत्पन्न होने वाली मालती, यूथिका आदि लताएँ और कमलिनी, इन सब की विशिष्ट रचना से वह अद्भुत था। उसके सुन्दर वस्त्रों के किनारे के भाग उत्तम स्वर्ण से रचे हुए थे, अथवा उसके सुन्दर छोरों में उत्तम स्वर्ण लगा हुआ था। इस प्रकारका सुन्दर पर्दा खिंचवा कर चादर तथा कोमल सिरहाने से अच्छादित, श्वेत वख से आच्छादित, विलक्षण, अंगों को सुख उत्पन्न करने वाला, अत्यन्त कोमल भद्रासन त्रिशला क्षत्रियाणी के लिए (4न्य पशु), मण, घोडा, मनुष्य, भगर, पक्षी. 1ि२ (५ प्रा२ना व्यन्त२), २२ ( नु भृग), अध्यापह ચમર (જ ગલી ગાય, હાથી, વનમાં પેદા થતી માલતી, યુથિકા (જૂહી) આદિ લતાઓ, અને કમલિની, એ બધાની વિશિષ્ટરચના વડે તે અદ્ભુત લાગતું હતું. તેના સુંદર વસ્ત્રોની કિનારાના ભાગે ઉત્તમ સુવર્ણથી રચેલ હતાં, અથવા તેના સુંદર છેડાઓમાં ઉત્તમ સુવર્ણ લગાડેલું હતું. આ જાતને સુંદર પદ ખેંચાવીને, ચાદર તથા કોમળ તકિયાઓથી આચ્છાદિત, સફેદ વસ્ત્રથી આચ્છાદિત, વિલક્ષણ અંગેને સુખ આપનારૂં, અત્યંત કમળ ભદ્રાસન, ત્રિશલા ક્ષત્રિયાણીને માટે મૂકાવ્યું. આસન ગેઠવાવીને ॥५३५॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧

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