Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 576
________________ कल्प श्रीकल्प सूत्रे ॥५६॥ मञ्जरी टीका नातिभयः अत्यधिकमयाकरणेन, नातिपरिवासै अत्यधिकोद्वेगपरिवर्जनेन, नातिभोजनाच्छादनवस्त्रगन्धमाल्यालङ्कारः अत्यधिकाहारवखगन्धमाल्याभूषणवर्जनेन तं गर्भ सुखं मुखेन परिवहति धारयति। वाग्भट्टनामके वैद्यकग्रन्थेऽप्युक्तमस्ति-बातकरपदार्थभोजनेन गर्भः कुब्जोऽन्धो जडो वामनश्च भवति, पित्तकरपदार्थभोजनेन गर्भः पाण्डुरोगी भवति। अतिक्षारभोजनं नेत्रं हन्ति, अतिशीतलभोजनं वायु प्रकोपयति, अत्युष्णं बलं हन्ति, अतिकामविकारो जीवितं हरति, मैथुन-यान-वाहन-मार्गगमन-स्खलन-पतन-पीडन-धावनकरती थी, न अतिमोह करती थी, न अधिक भय करती थी, न अधिक उद्वेग करती थी, और न अधिक भोजन, आच्छादन, वस्त्र, गंध, माला तथा आभूषण आदि का सेवन करती थी। इस प्रकार वह उस गर्भ को सुखपूर्वक वहन करने लगी। 'वाग्भट्ट' नामक वैद्यक-ग्रन्थ में भी कहा है-'वातकारी पदार्थों को खाने से गर्भ कुबड़ा, अंधा, जड़ और बौना हो जाता है। पित्तकारी पदार्थ खाने से गर्भ गिर जाता है, या पीला या चितकबरा हो जाता है। कफकारी वस्तुओं को खाने से गर्म पाण्डुरोगी होता है। अतिक्षार वाले पदार्थों का सेवन गर्भस्थ बालक के नेत्रों का घात करता है। अतिशीतल भोजन वायु को कुपित करता है। अति उष्ण भोजन बल का नाश करता है। अधिक कामविकार गर्भ के जीवन को हरण कर लेता है। मैथुन सेवन करने से तथा यान (गाड़ी आदि), वाहन (घोड़ा। आदि), मार्गगमन, स्खलन (फिसलना), पतन (गिरना), पीडन (अंगों को दबाना), धावन (दौड़ना), કરતાં નહીં, અતિશેક કરતાં નહીં, અતિ મેહ કરતાં નહીં', અતિભય કરતાં નહીં, અતિઉગ કરતાં નહીં અને વધારે પડતું ભેજન, આચ્છાદન, વસ્ત્ર, ગંધ, માળા તથા આભૂષણ આદિનું સેવન કરતાં નહીં આ રીતે તે તે ગર્ભને સુખપૂર્વક વહન કરવા લાગ્યો. "4 " नामना वैध-अन्यमा ५ छ-"वायुरी पार्थो भावाथी आक्ष पुषी, मय, मने ડીંગણે થઈ જાય છે. પિત્તકારી પદાર્થો ખાવાથી ગર્ભ પડી જાય છે, કે પીળા અથવા કાબરચીતરે થઈ જાય છે. કફકારી વસ્તુઓ ખાવાથી ગર્ભ પાંડુરેગી થાય છે. અતિક્ષારયુક્ત રાકનું સેવન ગર્ભમાં રહેલ બાળકની આંખનું ઘાતક નીવડે છે. અતિ ઠંડે ખેરાક વાયુને કુપિત કરે છે. અતિ ગરમ ભજન બળને નાશ કરે છે. અધિક કામવિકાર ગર્ભના જીવનને હરી લે છે. મિથુન સેવવાથી તથા યાન (ગાડી આદિ), વાહન (ઘેડા આદિ), त्रिशलाया गर्भरक्षणप्रयासः ॥५६०॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧

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