Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 550
________________ कल्प श्रीकल्प सूत्र ॥५३४॥ मञ्जरी टीका टीका-'तएणं से सिद्धत्थे राया' इत्यादि । ततः उपवेशनानन्तरं. स सिद्धार्थों राजा आत्मनः स्वस्य अदूरसामन्ते नातिसमीपे उत्तरपौरस्त्ये पूर्वोत्तरान्तरालरूपे दिग्भागे ईशानकोणे श्वेतवस्त्रप्रत्यवस्तृतानि-शुक्लवर्णवस्वाच्छादितानि, सिद्धार्थमङ्गलोपचारकृतशुभकर्माणि-सिद्धार्थः श्वेतसर्षपः, मङ्गलोपचाराः विघ्नक्षयकारणीभूतसामग्यः, तैः कृतं शुभ-शुभकर्म यत्र तथाभूतानि अष्टसंख्यकानि भद्रासनानि रचयति स्थापयति, रचयित्वा जवनिकांपर्दा' इति भाषापसिद्धाम् आच्छादयति-पातयतीत्युत्तरेणान्वयः; तत्र कीदृशी जवनिकाम् ? इत्याह-नानामणिरत्नमण्डितां-बहुविधमणिरत्नशोभिताम् अधिकप्रेक्षणीयरूपाम्-अधिकम् अत्यन्त प्रेक्षणीयं-दर्शनयोग्यं रूपम् आकारो यस्यास्ताम् , यद्वा-अधिकंबहु-नानाप्रकारं प्रेक्षणीयरूपं दर्शनीयवर्ण वस्तु यस्यां सा तथा ताम्-नानाप्रकारकदृश्यवर्णवस्तुविभिष्टाम् , महाघवरपत्तनोद्गतां-महा_-बहुमूल्या तादृशी या वरपत्तनोद्गतावरपत्तने श्रेष्ठवस्त्रोत्पत्तिस्थाने उद्गता=व्यूता च ताम्-बहुमूल्यां श्रेष्ठवस्त्रोत्पतिस्थाने निर्मितां च, तथा श्लक्ष्णबहुभक्तिशतचित्रस्थानां-लक्ष्णानि-मनोहराणि बहुभक्तिशतानि-अनेकशतरचनाविशेषयुक्तानि यानि टीका का अर्थ-'तएणं से सिद्धत्थे' इत्यादि। सिंहासन पर आसीन होने के अनन्तर नरेश सिद्धार्थ ने अपने से न अधिक दूर और न अधिक समीप, पूर्व-उत्तर दिशाके अन्तराल-ईशान कोण-में, श्वेत वस्त्रों से। आच्छादित तथा श्वेत सरसोंसे और विघ्नों का विनाश करने वाली दूसरी मांगलिक शुभसामग्री से युक्त आठ भद्रासन रखवाये। भद्रासन रखवाकर बीच में एक पर्दा खिंचवा दिया। वह पर्दा नाना प्रकार के मणियों से तथा रत्नों से सुशोभित था। उसका आकार अत्यन्त दर्शनीय था। अथवा उसमें अनेक प्रकार की देखने योग्य सुन्दर सुन्दर वस्तुएँ बनी थीं। वह बहुमूल्य था और श्रेष्ठ वस्त्र बनने वाले देश का बना हुआ था। उसमें मन को हरण करने वाले और सैकड़ों तरह की रचनाओं वाले चित्र बने हुए थे। ईहा टोहाना -'तपण से सिद्धत्थे' त्याहसिहासन पर मेsi पछी २० सिद्धार्थ पातानाथी म २ प नही मन બહુ નજીક પણ નહીં, પૂર્વ તથા ઉત્તર દિશાની વચ્ચે ઈશાન કેણુમાં, સફેદ વસ્ત્રોથી આચ્છાદિત, તથા શ્વેત સરસવ અને વિદ્ગોને વિનાશ કરનાર બીજ માંગલિક શુભ સામગ્રીથી યુકત આઠ ભદ્રાસનો મૂકાવ્યા. મૂકાવીને વચ્ચે એક પર્દો તણાવ્યું. તે પદે વિવિધ પ્રકારના મણીઓ તથા રત્ન વડે સુશોભિત હતા. તેને આકાર અત્યંત રમણીય હતે. અથવા તેમાં અનેક પ્રકારની જોવાલાયક સુંદર સુંદર વસ્તુઓ બનાવેલી હતી તે ઘણો કીંમતી હતો અને શ્રેષ્ઠ વસ્ત્ર વણનારા દેશમાં બનેલ હતું. તેમાં મનહર અને સેંકડો પ્રકારની રચનાઓવાળાં ચિત્ર દોરેલાં હતાં. ઈહામૃગ स्वमपाठकानो त्रिशलायाश्च कृते भद्रासनस्थाप नम् ||५३४|| શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧

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