Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 519
________________ श्रीकल्प कल्पमञ्जरी ॥५०३।। टीका प्रकाशवत् विमलं निष्कलङ्कं यद् यशस्तस्य धरः धारकः, स्याद्वादभङ्गतरङ्गनिरूपक:--स्याद्वादस्य ये भङ्गाः प्रकारास्त एव तरङ्गास्तेषां निरूपका प्रवर्तकः, विविधनयकल्लोलललितभङ्गजालान्तरालश्रुतधर्मसलिलसंभृतः-विविधाः= ___ अनेकमकारा ये नयास्त एव कल्लोला:-महातरङ्गास्तैललितं-सुन्दरं यत् तरङ्गसदृशानां भङ्गजालानाम् अन्तरालं= मध्यभागस्तद् विद्यते यत्र तादृशं यत् श्रुतधमरूपं सलिलं तेन संभृतः परिपूर्णः, तथा-विविधविमलभावनानदीसंगमसंजातसमुदयसमर्जितगुणसमृद्धपवचनमरूपकः-विविधा या विमलभावना: अनित्यत्वाशरणत्वादिभावनास्ता एव नद्यस्तासां यः संगमस्तेन संजातो यः समुदयःवृद्धिस्तेन समर्जिता ये गुणाः क्षान्त्यादिप्रदायकत्वगुणास्तैः समृद्ध-समृद्धिमत् यत् प्रवचन-प्रवचनरूपं जलं तस्य प्ररूपका प्रदर्शकः-उपदेष्टा, तथा-सकल जनहितविधायकत्वेन= सकललोकानां जन्मजरामरणदुःखविनाशरूपहितकारित्वेन हेतुना न्यक्कृतपीयुषहितामितगुणगणाभिराममधुरातिमधुरगिरा-न्यक्कृतं-तिरस्कृतं पीयूषम् अमृतं यया तादृशी हितामितगणगणाभिरामा हितामित गुणगणालङ्कृता मधुरातिमधुरा च या गी: वाणी तया सम्पन्नो-युक्तश्च भविष्यतीति ।।०४१।। १२-देवविमाणसुमिणफलं मलम्-देवविमाणदंसणेणं समवसरणरूवदव्बइड्ढिसंपन्नो केवलणाणाइभावइडिढसपन्नो जगआलंबणभूओ। होगा। अनेक प्रकार के नयरूपी महातरंगों से सुन्दर भंगजाल जिसके मध्य में स्थित हैं, ऐसे श्रुतधर्मरूपी जल से भरा हुआ होगा। अनित्यता-अशरणता आदि भावनारूपी नदियों के कारण उत्पन्न हुई वृद्धि से प्राप्त होने वाले क्षमाप्रदायकत्व आदि गुणों से युक्त प्रवचनरूपी जल का प्रदर्शक होगा। समस्त जनों के, जन्म, जरा, मरण के दुःखों के विनाश रूप हित का कर्त्ता होने से वह अमृत को भी मात करने वाली, हित एवं अपरिमित गुणों के समुदाय से युक्त, मधुर-अतिमधुर वाणी से विभूषित होगा |सू०४११॥ માન અને નિષ્કલંક યશ ધારક થશે. સ્યાદ્વાદના ભંગરૂપી તરંગને પ્રવર્તક થશે. અનેક પ્રકારના નયરૂપી મહાત. ગથી સુંદર ભંગાળ જેના મધ્યમાં રહેલ છે, એવા શ્રતધર્મરૂપી જળથી ભરેલો થશે. અનિત્યતા, અશરણુતા આદિ ભાવનારૂપી નદીઓના સંગમને કારણે ઉત્પન્ન થયેલ વૃદ્ધિથી પ્રાપ્ત થનારા ક્ષમા-પ્રદાન આદિ ગુણવાળા પ્રવચન-રૂપી જળને પ્રદર્શક થશે. સમગ્ર લોકોના, જન્મ, જરા, મરણના દુઃખના વિનાશરૂપ-હિતકર્તા હોવાથી તે અમૃતને પણ મહાત કરનારી, હિત અને અપરિમિત ગુણોના સમૂહવાળી, મધુર–અતિમધુર વાણીથી વિભૂષિત થશે. (सू० ४१) क्षारसागरमए स्वप्नफलम्. ॥५०३।। श्री ३९५ सूत्र:०१

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