Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 517
________________ श्रीकल्प स्त्रे ॥५०१॥ मञ्जरी टीका सकलजगताम् लोकत्रयस्य यत् जीवयोनिजात जीवयोनिसमूहस्तस्य आधारः आश्रयो भविष्यतीति । अयं भावः-यथोपद्मसरोवरो विमलजलादिशुक्तिसम्पुटान्तयुक्तो भवति, तथैवासौ तव पुत्रो निर्मलमाहात्म्यादिमुमुक्षुहदेयान्तयुक्तो भविष्यति, अहिंसाधर्मोपदेशेन सर्वेषां जीवानामाधारश्च भविष्यतीति ॥०४०॥ ११-वीरसायरसुमिणफलं मूलम्-खीरसायरदसणेणं अमू नाणाइ-अणंतगुणगण-रयणीयरी माहुरिय-गंभीरियाइ-गुडागणालंकिओ ससिकिरण-सरिस-उज्जल-विमल-जसधरो सियवायभंगतरंगणिरूवगो विविहणय-कल्लोल-ललिय-भंग जालं-तराल-सुयधम्म-सलिल-संभित्रो विविह-विमल-भावणा-णई-संगम-संजाय-समुद्रय-समज्जिय-गुणसमिद्ध-पवयण-परूवगो सयलजणहियविहायगत्तणेणं नकयपीऊस-हिया-मिय-गुणगणा-भिराम-महुराइमहुर-गिरा संपन्नो भविस्सइ ।।सू० ४१॥ ११-क्षीरसागरस्वप्नफलम् छाया-क्षीरसागरदर्शनेन असौ ज्ञाचाद्य-नन्तगुणगण-रत्नाकरो माधुर्यगाम्भीर्यादि-गुणगणा-लतः सरोवर की तरह वह तीनो लोकों के जीवों का आधारभूत होगा । अभिप्राय यह है कि जैसे पद्मसरोवर निर्मल जल से लेकर शुक्ति-संपुट तक से युक्त होता है, उसी प्रकार वह बालक भी निर्मल महात्म्य से लेकर मोक्षाभिलाषी जीवों के हृदय तक से युक्त होगा और अहिंसाधर्म का उपदेश करके सब जीवों का आधार बनेगा ।।०४०॥ ११-क्षीरसागर के स्वप्न का फल मूल का अर्थ-'खीरसायरदसणेणं' इत्यादि । क्षीरसागर के देखने से वह ज्ञान आदि अनन्त गुणયમાન થનાસ મુમુક્ષુ જીના હૃદયથી સુશોભિત હશે. આ પ્રમાણે, એટલે કમળવાળાં સરેવરની જેમ તે ત્રણે લોકના જીને માટે આધારરૂપ થશે ભાવાર્થ એ છે કે જેમ પદ્મસરોવર નિર્મળ જળથી લઈને છીપ સંપુટથી યુક્ત હોય છે તેજ પ્રમાણે તે બાળક પણ નિર્મળ મહાભ્યથી લઈને મેક્ષાભિલાષી જેનાં હૃદય સુધીની ચીજોથી યુક્ત થશે, અને અહિંસાધર્મને ઉપદેશ કરીને બધા ને આધાર થશે. (સૂ૦ ૪૦) ૧૧ ક્ષીરસાગરના સ્વપ્નનું ફળ भूगन। मथ- 'खीरसायरदसणेण त्याहि-क्षीरसास नेवाथी ते ज्ञान मा अनन्त सुख-रत्नानी पद्म सरोवरम स्वप्नफलम्. ॥५०॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧

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