Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 492
________________ श्रीकल्प सूत्रे कल्पमञ्जरी टाका ॥४७६॥ महान्तरायकषायकुलमुन्मूलयिष्यति १, दन्तेन दन्ती व्रततिततिमिव व्रती वीरो वरीयसा तपसा नरकतिर्यङ्नरामरगतिभ्रमणसन्ततिमन्तयिष्यति २, महाप्रभावदानशीलतपोभावभेदभिन्नान् चतुर्विधान् धर्मान् चतुरो दन्तान स्फुरद्धर्यभावो रणाङ्गणे पराक्रममाणो वारण इव द्वादशविधपरिषदङ्गणे दर्शयिष्यति ३, श्रुतचारित्रधर्मनिरूपणतोऽग्लानतया दिग्दन्तीव चतुर्दिश स्वायत्तीकरिष्यति ॥सू० ३१॥ टीका-'तत्थ णं' इत्यादि । तत्र=तेषु-प्रसिद्धेषु खलु एतेषु चतुर्दशसु महास्वप्नेषु एकैकस्य महास्वप्नस्य अयमेतदपः वक्ष्यमाणप्रकारकः फलवृत्तिविशेषः फलनिष्पत्तिविशेषो भविष्यति। तमेवाह-'तद्यथा' इत्यादिना। तत्र प्रथमस्य चतुर्दन्तगजस्वमस्य फलमाह-चतुर्दन्तदन्तिदर्शनेन-चत्वारो दन्ता यस्य स चतुर्दन्तः, स चासौ दन्ती हस्ती, तस्य दर्शनं तेन हेतुना असौतव गर्भस्थितो बालः शूरः शत्रुदमने कृतोत्साहः, वीर: शत्रुणां पराजयकारकः, अत एव-विक्रान्तः अद्भुतपराक्रमयुक्तश्च सन् दन्तेन दन्ती नदी कूलतरुमूलमिव, प्रभूतेन महता घोरेण तपसा महान्तरायकषायकुलम्-महान्तो ये अन्तराया ज्ञानादिपाप्तौ विघ्नरूपाः, कपायाः क्रोधमानमायालोभाः, तेषां कुलं समूहम् उन्मूलयिष्यति-उत्पाटयिष्यति । तथा-यथा दन्तेन दन्ती व्रततिततिम्लतासमूहम् अन्तयति-विनाशयति तथैवायमपि व्रती=महाव्रतधारी वीरो वरीयसा प्रशस्यतमेन तपसा नरकतिर्यनरामरगति गजस्वमफलम् १-चार दांत वाले गजस्वप्न का फल 'दंतिदसणेणं' इत्यादि । (१) चार दांतों वाले दन्ती (हस्ती) को देखने से वह बालक शूर, वीर और पराक्रमी होगा। जैसे हाथी अपने दांतों से नदी-किनारे के वृक्षों को उखाड़ देता है। वैसे ही वह विपुल तपस्या से महान विनरूप उपायों के समूह का विनाश करेगा। (२) जैसे दन्ती लताओं के समूह को उखाड़ कर फेंक देता है, उसी प्रकार वह व्रती वीर घोर तपस्या से नरक तिर्यच मनुष्य और ॥४७६॥ ૧-ચાર દાંતવાળા ગજસ્વપ્નનું ફળ “दतिदसणेण" त्याहि-१) यार तिवाणान्ती (हाथी) नवाथी ते माण शूरवीर अने भी થશે. જેમ હાથી પિતાના દંતશૂળ વડે નદીકિનારાનાં વૃક્ષોને ઉખાડી નાખે છે. એ જ રીતે તે વિપુલ તપસ્યા વડે મહાન વિજ્ઞરૂપ કષાયોના સમૂહને નાશ કરશે. (૨) જેમ હાથી લતાઓના સમૂહને ઉખાડીને ફેંકી દે છે, તેજ પ્રમાણે તે વૃતી વીર ઉગ્ર તપસ્યાથી નરક, તિર્યંચ, મનુષ્ય, અને દેવ ગતિમાં ભમવાની પરંપરાને અન્ત લાવશે. का-RA શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧

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