Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 495
________________ श्री कल्प सूत्रे ॥४७९॥ 興漁鮮 युगमिव धर्मधुरां = धर्मरूपशकटस्य युगं धरिष्यति । तथा चासौ सारं=श्रेष्ठम् उदारम्=अद्भुतं तपःसंयमभारं= द्वादशविधस्य तपसः सप्तदशविधस्य संयमस्य च भारं वक्ष्यति वहनं करिष्यति । तथा श्रुतचारित्रलक्षणं श्रुतचारित्रस्वरूपं धर्मारामम्=धर्मरूपमुद्यानम् अमोघधारया=अमोघा-अबन्ध्या-सफला धारा-प्रवाहो यस्यास्तया, सुधाधारया = सुधादृष्टिरूपया गिरा = वाण्या सिञ्चन् पुष्पितं फलितं च करिष्यति । श्रुतचारित्रलक्षणस्य धर्मस्य उन्नायको भविष्यतीति भावः । एवंभूतोऽसौ पवित्रे = धर्मात्मनां निवासभूतत्वात्पावने भरतक्षेत्रे = भरत क्षेत्रनाम के क्षेत्रे स्वर्गापवर्गसुखसम्पादनाबीजंस्वर्गापवर्गयोः= स्वर्गसिद्धिगत्योर्यत् सुखं तस्य या सम्पादना = निष्पादना तस्या बीजं कारणं स्वर्गमोक्षसम्बधिसुखमाप्तिकारणं बोविबीजं बीजं सम्यक्त्वरूपं बीजं वस्यति ||सू० ३२ || ३ -सीहसुमिणफलं मूलम् -सीहदंसणेणं अमू भुवणत्तए सूरो वीरो विक्कतो भविस्सर १, वाइविंदमाणमगो भविस्सर २, रागदोसाइरिणं विजितारो भविस्सर ३, तिभुवणे एगच्छत्तं सासणं करिस्सर ४ ॥ ०३३ || प्रकार धारण करेगा, जिस प्रकार श्रेष्ठ वृषभ शकट (छकड़ा गाड़ी) की धुरा को धारण करता है । तथा वह श्रेष्ठ एवं अद्भुत बारह प्रकार के तप और सत्तरह प्रकार के संयम के भार को वहन करेगा। वह श्रुत - चारित्र धर्म रूपी ant को अपनी अमोध - निष्फल न होने वाली धारा से युक्त अमृतवर्षा के समान वाणी की वर्षा से सींचता हुआ उसे पुष्पवान् और फलवान् बनाएगा । अर्थात् वह श्रुत - चारित्र धर्म का संवर्द्धक होगा । ऐसा वह धर्मात्माओं का निवासस्थल होने के कारण पवित्र भरतक्षेत्र रूपी क्षेत्र (खेत) में स्वर्ग और मोक्ष गतियों के सुख उत्पन्न करने के कारणभूत समकितरूपी बीज को बोएगा ||० ३२ || ધારણ કરશે કે જે પ્રમાણે શ્રેષ્ઠ વૃષભ શકટની (ગાડાની) ધૂંસરીને ધારણ કરે છે.તથા તે શ્રેષ્ડ અને અદ્ભુત બાર પ્રકારનાં તપ અને સત્તર પ્રકારનાં સયમના ભારને ઉપાડશે. તે શ્રુત-ચારિત્ર-ધરૂપી ખાગને પેાતાની અમેઘ-નિષ્ફળ ન નિવડનારી ધારાથી યુક્ત અમૃતવર્ષા જેવી વાણીની વર્ષા વડે સંચીને તેને પુષ્પાવાળા તથા ફળાવાળા બનાવશે, એટલે કે ते श्रुत-यास्त्रि-धर्मनो संबद्ध ४ थशे. मेव। ते, धर्मात्मा निवासस्थान होवाने द्वारा पवित्र भरतक्षेत्र - ३यी ક્ષેત્રમાં સ્વર્ગો અને મેાક્ષગતિયેનું સુખ ઉત્પન્ન કરવાના કારણરૂપ સમક્તિરૂપી ખીજને વાવશે (સૂ૦૩૨) શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧ कल्प मञ्जरी टीका सिंहस्वप्न फलम्. 1180911

Loading...

Page Navigation
1 ... 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596