Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
श्रीकल्प
पितानि सुशोभितानि चत्वारि द्वाराणि यस्य तम्, तथा-अष्टोत्तरसहस्र-मणिस्तम्भ-प्रभा-विडम्बित-सहस्रकरम्अष्टोत्तरसहस्रम् अष्टाधिकसहस्रसंख्यका ये मणिस्तम्भाः वैर्यादिमणिरचितस्तम्भाः तेषां प्रभाभिः विडम्बित:= तिरस्कृतः सहस्रकरः सूर्यों येन तम्, तथा-विविधशोभाधरं बहुप्रकारकशोभाधारकम्, तथा--विमल-शङ्खतल-दधिघन-गोक्षोरफेन-रजतनिकर -निर्मल-प्रकाशं-विमलाः = शुभ्रा ये शङ्खतल-दधिधन-गोक्षीरफेन-रजतनिकराः तद्वद् निर्मलः प्रकाशो यस्य तम्, तथा-जाज्वल्यमान-दिव्य-तेजःपुञ्ज-संकाशं-जाज्वल्यमानः अतिप्रकाशमानो यो दिव्य शोभनः तेजःपुञ्जः तेजःसमूहः तत्संकाशं-तत्सदृशम्, तथा-मृग-महिष-वराह-च्छगल-दर्दुरह्य-गज-गवय-भुजग-खड्ग-वृषभ-नर-मकरादि-जलचर-किन्नर-मुर-चमर-सिंह-शार्दूला-धापद-वनलता-कमल
कल्पमञ्जरी
।।४५५||
टाका
देवविमान
रत्नों से तथा मोतियों के बने तोरणों से विभूषित थे । वैड्र्य आदि मणियों के बने एक हजार आठ स्तंभों की प्रभा से वह सूय का भी तिरस्कार करता था। वह विविध प्रकार की शोभा से सम्पन्न था। शुभ्र शंख के सदृश, जमे हुए दही के सदृश, गोदुग्ध के फेन के सदृश तथा चांदी की राशि के सदृश उसका प्रकाश था। वह ऐसा प्रतीत होता था, मानो अत्यन्त प्रकाशमान लोकोत्तर तेज का पुंज हो । वह हिरण, भैंसा, शूकर, बकरा, मेंढक, घोडा, हाथी, गवय, (गाय के समान-रोझ नामक जंगली पशु), सर्प, गेंडा, वृषभ, नर, तथा-मगर आदि जलचर, किन्नर (देवविशेष), सुर (देव), चमर (एक तरह का पशु), सिंह, व्याघ्र, अष्टापद (सरभ नामक एक जंगली पशु), वनलता (वन में उत्पन्न वेल), कमललता (कमल के फूलों की वेल) आदि के अद्भुत चित्रों से दर्शकों के चित्त को सन्तोष प्रदान करता था। उसमें सुन्दर
वर्णनम्,
Sear Wis Samaal
Mula
મણીથી બનેલા એક હજાર આઠ સ્તંભનાં તેજ વડે તે સૂર્યને પણ મહાત કરતું હતું. તે વિવિધ પ્રકારની શોભાવાળું હતું. સફેદ શંખના જે, જમાવેલા દહીંના જે, ગાયના દૂધનાં ફીણના જે તથા ચાંદીના ઢગલા જે તેને પ્રકાશ હતે. તે જાણે અત્યંત પ્રકાશમાન અપાર્થિવ (કેત્તર) તેજને પુંજ હોય તેવું લાગતું હતું. તે હરણ, बस, लूड, ५४२, ४, घोडा, हाथी, अ१५ (आयना । नाभनु nी प्राणी), स५, में, वृषभ, न२, तथा भा२ मा य२, (२ (हवनी - 1), सुर(३१), यभ२ (४ गत पशु), सि, वाघ, AVel. પદ (સરભ નામનું એક જંગલી પશુ), વનલતા (વનમાં પેદા થતી વેલ), કમળલતા (કમળનાં ફૂલોની વેલ) આદિના અદૂભુત ચિત્રથી જોનારાઓનાં ચિત્તને સંતોષ આપતું હતું. તેમાં સુંદર તાલ (ગીતકળાની ક્રિયાનું માન) અને
MAGAR AS on
॥४५५॥
२ (EANIN२)
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧