Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीकल्प
सूत्रे ॥२३९॥
टीका
मारितः। तदनन्तरं च खलु तस्य त्रिपृष्ठस्य प्रतिवासुदेवेन शवपुराधीश्वरेण अश्वग्रीवेण सह युद्धं संजातम्। तत्र तेन अश्वग्रीवस्य शीर्ष तनिक्षिप्तेनैव चक्रेण छेदितम्। देवैश्व घुषितम्-'एप त्रिपृष्ठः प्रथमो वासुदेवः समुत्पन्न इति । ततः सर्वे राजानो नताः। उदितम् अदभरतम् । कोटिका शिला बाहुभ्यां धृता ।।मू०२४।। टीका-'तएण' इत्यादि-ततः खलु स नयसारजीव: आयुर्भवस्थितिक्षयेण=देवसम्बन्धिनीना
कल्प
मञ्जरी मायुभवस्थितीनां क्षयेण महाशुक्राद् देवलोकात् च्युत्वा सप्तदशे भवे भरतक्षेत्रे पोतनपुरनगरे प्रजापतिनाम्नो राज्ञो मृगावत्या देव्याः कुक्षौ सप्तस्वप्नसूचितः चतुर्दशस्वप्नेषु अन्यतमसप्तस्वप्नदर्शनात् मूचितो वासुदेवः पुत्रतया उपपन्नः समागतः । साधिकेषु नवसु मासेषु व्यतिक्रान्तेषु गर्भाद् विनिष्क्रान्तः। तस्य ज्येष्ठभ्राता लगा। एक समय उस सिंह को त्रिपृष्ठने पूर्वभव में किये हुए निदान के प्रभाव से बाहुयुद्ध करके मार दिया। उसके बाद शंखपुर के स्वामी अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव के साथ त्रिपृष्ठ का युद्ध हुआ। उस युद्ध में इसने अश्वग्रीव का मस्तक उसीके फेंके हुए चक्र से काट दिया। उस समय देवों ने घोषणा की-'त्रिपृष्ठ प्रथम वासुदेव हुए। सब राजाओं ने वासुदेव को नमन किया। त्रिपृष्ठ ने आधे भरत- र महाविरस्य क्षेत्र का राज्य प्राप्त किया। एक करोड़ मन की शिला हाथों से उठा ली । मू०२४ ॥ टीका का अर्थ-'तए णं' इत्यादि । तब नयसार का जीव देवसबंधी आयु, भव और स्थिति का
नामकः क्षय होनेसे महाशुक्र नामक देवलोक से च्युत होकर सत्तरहवें भव में भरतक्षेत्र के अन्तर्गत पोतनपुर नामक नगर में,
सप्तदशो
भवः। प्रजापति राजा की मृगावती देवी के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। चौदह महास्वमों में से माता को सात स्वम आये, इससे सूचना मिल गई कि वह वासुदेव होगा। ધણી અશ્વગ્રીવ સાથે તેને યુદ્ધમાં ઉતરવું પડયું. અશ્વગ્રીવે ત્રિપૃષ્ઠને મારી નાખવા તેના ઉપર ચક્ર ફેંકયું, પણ તે જ ચક્રવડે ત્રિપુઠે અશ્વગ્રીવનું માથું ઉડાવી દીધું. તે સમયે દેવદુંદુભી સાથે દેવશેષણા થઈ કે ‘ત્રિપૃષ્ઠ પ્રથમ વાસુદેવ તરીકે જાહેર થયાં છે. ' વાસુદેવે ત્રણ ખંડ છતી તેના પર પિતાનું આધિપત્યપણું સ્થાપિત કર્યું. તેમનામાં અતુલબળ હતું. જેના આધારે એક કરોડ મણુની શીલાને પણ હાથ વડે જમીન પરથી ઉંચકી લીધી. (સૂ૦૨૪)
।।२३९॥ जाना अथ:-'तए णं त्याहि. त्यारे समधीमायुष्य, समनस्थितिमा क्षय यता भानामना - લકમાંથી આવીને સત્તરમા ભવમાં નયસારને જીવ ભરતક્ષેત્રની અંદર પિતનપુર નામના નગરમાં પ્રજાપતિ રાજાની મૃગાવતી નામની રાણીના ઉદરમાં પુત્રરૂપે ઉત્પન્ન થયે. ચૌદ મહાસ્વપ્નમાંથી માતાને સાત સ્વપ્નમાં આવ્યાં. તેથી સૂચના છે
त्रिपृष्ठ
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧