Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीकल्प
सूत्रे
त्तरयोर्ध्वाधोदिशोश्चापि योजनमर्यादा, तस्यां भिक्षाचर्यायै गन्तुं भिक्षां गृहीत्वा प्रतिनिवर्तितुं वा कल्पते । अयं भावः-ग्रामादिद्वारतः पूर्वस्यां दिशि क्रोशद्वयं पश्चिमायां च क्रोशद्वयमिति चतुष्कोशावधि क्षेत्रं साधुभिः । साध्वीभिश्च भिक्षार्थ गन्तव्यम् । एवं दक्षिणोत्तरविषये ऊर्ध्वाधोविषयेऽपि विज्ञेयमिति ।। मू०२९॥
इत्थं भिक्षाविषयमवग्रहमभिधाय सम्पति तन्निषेधमाह
मूलम्-नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गयीणं वा गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा, जइ तत्थ नई निच्चोयगा निच्चसंदणा असेउगा, तस्थ सव्वओ समंता जोयणमेराए भिक्खायरियाए गमित्तए वा पडिनियत्तए वा ॥ मू०२८॥
छाया-नो कल्पते निग्रन्थानां वा निम्रन्थीनां वा ग्रामे वा यावत् सन्निवेशे वा, यदि तत्र नदी
कल्पमञ्जरी टाका
॥९८॥
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सी एक योजन की मर्यादा समझनी चाहिए । इसी प्रकार दक्षिण-उत्तर में तथा ऊपर-नीचे भी एक एक योजन समझना चाहिए। इसी मर्यादा में भिक्षा के लिए जाना और भिक्षा लेकर पीछा आना कल्पता है। अभिप्राय यह है कि ग्राम आदि के दरवाजे से पूर्व दिशा में दो कोस और पश्चिम दिशा में दो कोस, इस तरह चार कोस की दूरी तक साधुओं और साध्वियों को जाना कल्पता है। यही विधान दक्षिण उत्तर तथा ऊर्ध्व-अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए ॥सू०२७।।
इस प्रकार भिक्षा-विषयक अवग्रह बतलाकर अब उसके विषय में निषेध बतलाते हैं--'नो कप्पइ' इत्यादि। मूल का अर्थ-ग्राम यावत् सन्निवेश में यदि नदी हो, जिसमें सदा जल रहता हो, जो
એ પ્રમાણે દક્ષિણ-ઉત્તરમાં તથા ઉપર નીચે પણ એકએક જન સમજવું. એ મર્યાદામાં શિક્ષાને માટે જવું અને ભિક્ષા લઈને પાછા આવવું કપે છે. તાત્પર્ય એ છે કે ગ્રામ આદિના દરવાજાથી પૂર્વમાં બે ગાઉ અને પશ્ચિમમાં બે ગાઉ, એમ ચાર ગાઉના અંતર સુધી સાધુ-સાધ્વીઓને જવું ક૯પે છે. એ વિધાન દક્ષિણ-ઉત્તર તથા 4- हिशाना विषयमा ५ . (सू०२७)
से प्रभारी निक्षाविषय अपर मतावान वे से विषयमा निषेध मतावे छ:-नो त्याहि. મૂળને અર્થ-ગ્રામ યાવત્ સંનિવેશમાં જો નદી હોય, જેમાં હમેશાં જળ રહેતું હોય, ને હમેશાં વહેતી
॥९८॥
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શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧