________________ (18) . श्री कल्पसूत्र-बालावबोध जो भणइ नत्थि धम्मो, न य सामाइय न चेव य वयाइं। सो समणसंघ - बज्झो, कायव्वो समणसंघेण।।१।। इसलिए यदि पूर्व साधु की अपेक्षा से हीन कहो, तो भले कहो; पर दुषम काल में साधु हैं ही नहीं; ऐसा नहीं कहना चाहिये। इसलिए कि साधु तो आज भी हैं। ____ अब यह दस प्रकार का कल्प जो साधु का आचार-धर्म है, सो तीसरे वैद्य की औषधि के समान है। याने कि जैसे तीसरा वैद्य उपकारक हुआ, वैसे ही यह कल्प भी उपकारक जानना। उस तीसरे वैद्य की कथा कहते हैंदशविध कल्परूप धर्म पर वैद्य की कथा किसी एक राजा के एक ही अत्यन्त वल्लभ पुत्र था। इसलिए उस राजा ने विचार किया कि यदि रोग आने के पहले ही इस पुत्र का मैं इलाज कराऊँ, तो फिर इसे कभी रोग ही नहीं होगा। यह सोच कर उसने वैद्य को बुला कर कहा कि इस लड़के के लिए ऐसी औषधि बनाओ कि जिससे इसे कभी कोई बीमारी न हो। तब वह वैद्य बोला - 'राजन्! मेरे पास ऐसी औषधि है कि जिसके सेवन से यदि रोग हो, तो वह मिट जाता है; पर यदि रोग न हो, तो नया रोग प्रकट हो जाता है।' यह सुन कर राजा ने कहा कि सोये हुए सिंह को जगाने जैसी तेरी औषधि की हमें आवश्यकता नहीं है। यह कह कर उसे बिदा कर दिया। फिर दूसरे वैद्य से पूछा। तब वह बोला- हे राजन! मेरी औषधि के सेवन से रोग हो तो मिट जाता है और न हो तो कोई गुण-दोष नहीं होता। यह सुन कर राजा ने कहा कि राख में घी डालने के समान तेरी औषधि भी हमारे काम की नहीं है। इसके बाद तीसरे वैद्य को बुला कर पूछा। तब वह बोला- हे राजन्! मेरे पास ऐसी औषधि है कि जिसके सेवन से रोग हो तो मिट जाता है; पर यदि रोग न हो तो भी वह बल, बुद्धि, रूप और तेज बढ़ाती है। उसे नया कोई रोग नहीं होता। यह बात सुन कर राजा प्रसन्न हुआ। उसने उस वैद्य की दवा पुत्र को दिलवायी और वैद्य को पुरस्कार दे कर बिदा किया।