________________ (238) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बिना लोक में मेरा यश नहीं रहेगा। इसलिए इसके साथ वाद करने के लिए मुझे ही जाना पड़ेगा। इसे मैं हराऊँगा, तो ही संसार में मेरा यश रहेगा। फिर पुनः अभिमान पूर्वक इन्द्रभूति ने कहाहं हो ! वादिगणा भोटाः, कर्णाटादि-समुद्भवाः। कस्माददृश्यतां प्राप्ता, यूयं मम पुरः सदा।।१।। अरे कर्णाटादिक देशों में उत्पन्न वादियो ! तुम मेरे आगे दिखाई क्यों नहीं देते? तुम अदृश्य क्यों हो गये हो? तुम सब मेरे आगे हारे हुए हो, इसीलिए छिप गये हो। क्योंकि मैंने इतने देशों के पंडितों को हराया है लाटा दूरगताः प्रवादिनिवहा, मौनं श्रिता मालवाः। मूकत्वं मगधागता गतमदा, गर्जन्ति नो गुर्जराः।। काश्मीराः प्रणताः पलायनकरा, जातास्तिलङ्गोद्भवाः। विश्वे चापि स नास्ति यो हि कुरुते, वादं मया साम्प्रतम्।।१।। भोट-कर्नाटक देश के वादी मुझे देख कर अदृश्य हो गये, तो फिर अन्य देशों के वादियों की मेरे आगे क्या ताकत है? लाट देश के वादीसमूह ने मेरा नाम सुन कर यह सोचा कि वहाँ जायेंगे, तो हार कर लौटना पड़ेगा। यह सोच कर वे दूर चले गये। एक लाख बानवे हजार मालव देश के वादी थे। वे हार जाने के भय से मेरे आगे मौन धारण कर के रहे। इसी प्रकार मगध देश के दस लाख वादी मेरे आगे मूक (गूंगे) हो गये याने एक शब्द भी नहीं बोल सके तथा गुजरात देश के एक लाख सत्तर हजार वादी मेरे आगे मदरहित हो गये। वे हाथी के समान गर्जना कर एक शब्द भी नहीं कह सके। वे ऐसे दीन हो गये। जहाँ सरस्वती का वास है, ऐसे श्री काश्मीर देश के वादी आ कर मेरे पाँव पड़े। इस कारण तैलंग देश में उत्पन्न नौ लाख वादी मेरा नाम मात्र सुन कर ही भाग गये। अन्य कोई बात उन्हें सूझी ही नहीं। अधिक क्या कहूँ? संसार में ऐसा कोई भी पंडित नहीं है, जो इस समय यहाँ आ कर मेरे साथ वाद करे। याने कि मैंने सब वादियों को जीत लिया है, पर मुझे जीतने वाला संसार में कोई नहीं है।