________________ (422) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध लघुवय के शिष्य तथा जिसे स्तन न हों ऐसी लघुवय की शिष्याएँ प्रमुख की वैयावृत्त्य करने के लिए यदि एक दिन में दो-तीन बार गृहस्थ के घर जाना पड़े, तो भी उसकी मनाई नहीं है। पर अपने लिए तो एक बार ही जाना कल्पता है। उपरांत जाना नहीं कल्पता। तथा एक उपवास करने वाले को एक बार गोचरी ला कर खा पी कर तृप्त होने के बाद, पात्रप्रमुख पोंछ लेने के बाद पुनः दूसरी बार गोचरी नहीं जाना चाहिये। पर यदि तृप्ति न हुई हो, तो दूसरी बार गोचरी जाना कल्पता है। बेले की तपस्या वाले को दो बार और तेले की तपस्या वाले को तीन बार गोचरी जाना कल्पता है। तीन उपवास से उपरान्त तपस्या करने वाले को मर्जी में आये उतनी बार गोचरी जाना कल्पता है। यह गोचरी जाने से संबंधित आठवीं समाचारी जानना। 9. बरसात में रहे हुए साधु-साध्वी जो नित्य भोजन करने वाले हैं, उन्हें श्री आचारांग सूत्र में कहा हुआ इक्कीस प्रकार का जल लेना कल्पता है। एक उपवास वाले साधु को एक आटे का धोवन, दूसरा पान का धोवन और तीसरा चावल का धोवन ये तीन प्रकार का पानी लेना कल्पता है। छ? के तपवाले साधु को एक तूस (कूकस) का धोवन, दूसरा जव का धोवन और तीसरा तिल का धोवन, ये तीन प्रकार का पानी लेना कल्पता है तथा अट्ठम के तप वाले साधु को एक ओसामण, दूसरा काँजी और तीसरा तीन बार उबला हुआ गरम पानी, ये तीन प्रकार का पानी लेना कल्पता है और तीन उपवास से अधिक तप करने वाले साधु को तो केवल उष्ण जल ही लेना कल्पता है तथा अनशन वाले साधु को एक उष्ण पानी ही कल्पता है। वह भी छना हुआ हो और वह भी थोड़ा-थोड़ा पीना, परन्तु अधिक पीना नहीं कल्पता। यह पानी पीने से संबंधित नौवीं समाचारी जानना। 1. ओसामण (माँड), 2. पिष्टोदक, 3. संस्वेदिम, 4. तंदुलोदक, 5. तुषोदक, 6. तिलोदक, 7. यवोदक, 8. सौवीर, 9. अंबोदक, 10. अंबाडोदक, 11. कपित्थोंदक, 12. मातुलिंगोदक, 13. द्राक्षोदक, 14. दाडिमोदक 15. खजूंरोदक, 16. श्रीफलोदक, 17. करीरोदक, 18. बदरोदक, 19. आमलकोदक, 20. चिंचोदक, 21. उष्णोदक।