Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 480
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (447) रीति से भगवान ने कहा है, वैसे पालन करे। भले प्रकार से मन, वचन और काया से स्पर्श, अतिचाररहित पाले, विधिसहित शोभा कर के दीपाये, यावज्जीव पाले, किनारे पहुँचाये और लोगों में कीर्ति करे। इस समाचारी की आराधना कर और आज्ञासहित इसे पाल कर कई निर्मंथ तो उसी भव में सिद्ध होते हैं। तत्त्व को जान कर, कर्मों से रहित हो कर सब दुःखों से छूटते हैं- मोक्ष जाते हैं। कई तीसरे भव में सिद्ध होते हैं यावत् मोक्ष जाते हैं, परन्तु सात-आठ भव तो पार नहीं करते। सातवेंआठवें भव में तो अवश्य मोक्ष जाते हैं। __ यह समाचारी (मर्यादा-पालन) फल से संबंधित अट्ठाईसवीं समाचारी जानना। उस काल में उस समय में श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी राजगृह नगरी के गुणशील यक्षायतन में अनेक साधुओं में, अनेक साध्वियों में, अनेक श्रावकों में, अनेक श्राविकाओं में और अनेक देवों में, अनेक देवियों में बैठे हुए (बारह पर्षदा में बैठे ही) ऐसे वचन कहते हैं, इस कल्प को पालने का फल बताते हैं, ऐसी प्ररूपणा करते हैं। यह पर्युषणकल्प अध्ययन- दशाश्रुतस्कंध का आठवाँ अध्ययन अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित, सूत्रसहित, अर्थसहित, सूत्रार्थसहित, दृष्टान्तसहित बार बार उपदेश कर के बताते हैं। .. इस तरह श्री भद्रबाहुस्वामी ने यह सूत्र दशाश्रुतस्कंध में आठवें अध्ययन के रूप में रचा है, पर वाचना सब सुधर्मास्वामी और जंबूस्वामी की ही जानना। _जैनाचार्य श्रीमद् भट्टारक विजय राजेन्द्रसूरीश्वर - सङ्कलिते श्री कल्पसूत्रबालावबोधे नवमं व्याख्यानं समाप्तम्।। 卐卐

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