________________ (446) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 25. बरसात में रहे हुए साधु-साध्वी को जीवादिक की उत्पत्ति के कारण चौमासे में तीन उपाश्रय रखने चाहिये। उनमें से जिस उपाश्रय में स्वयं रहे, उस उपाश्रय को प्रतिदिन तीन बार पूँजना चाहिये और अन्य दोनों उपाश्रयों को एक बार पूँजना चाहिये। उनकी पडिलेहणा करनी चाहिये। यह प्रमार्जन-पडिलेहणा करने से संबंधित पच्चीसवीं समाचारी जानना। 26. बरसात में रहे हुए साधु-साध्वी को अपनी मर्जी में आये, वहाँ जाना हो तो गुरु से पूछ कर और दिशा या स्थान बता कर ही जाना कल्पता है। बिना पूछे जाना नहीं कल्पता। शिष्य पूछता है कि किसलिए? गुरु कहते हैं कि साधु चौमासे के बिना शेष काल में तो सामान्य प्रकार के तप करता / है, पर चौमासे में अनेक प्रकार के विशेष तप करता है। कोई तपस्वी दुर्बल हो और मुर्छा खा कर गिर जाये, तो जिस दिशा में वह गया हो, उस दिशा में आचार्य याद रख कर निगाह कराते हैं कि इतना समय क्यों लगा? इसलिए आचार्य से पूछ कर बाहर जाना चाहिये। यह प्रतिजागरण (पूछ कर जाने) से संबंधित छब्बीसवीं समाचारी जानना। 27. वर्षाकाल में चौमासे में रहे हुए साधु-साध्वी को औषधिप्रमुख काम के लिए वैद्य के पास जाना पड़े, तो जो गाँव चार योजन अथवा पाँच योजन तक अपने गाँव से दूर हो, वहाँ जाना कल्पता है। याने कि सोलह या बीस कोस (पचास या चौसठ किलो मीटर) दूर जा कर उस गाँव से औषधि ले कर वापिस लौटते समय यदि अपने रहे हुए गाँव के उपाश्रय में दिन रहते आया न जा सके, तो उस गाँव के बाहर आ कर रहना, पर जिस गाँव में औषधादिक लेने गये, उस गाँव में रात में रहना नहीं अथवा दिन रहते गाँव के बाहर न पहुँचा जा सके, तो मार्ग में भी रहना कल्पता है। यह औषधादिक लाने गमनागमन से संबंधित सत्ताईसवीं समाचारी जानना। 28. इत्यादिक संवत्सरी का स्थविरकल्प जिस तरह कल्पसूत्र में कहा है, उस विधि से आराधन करे। ज्ञान, दर्शन और चारित्र का मार्ग जिस