________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (433) मरे तो भी इसे जयणापूर्वक पार करने की केवली भगवान की आज्ञा है। इसलिए उतर कर जाना, पर कूद कर नहीं जाना। क्षमायाचना कर के ही प्रतिक्रमण करना कल्पता है। इस पर उदायी राजा का दृष्टान्त पर्युषण आते ही तुरन्त सबके साथ खमतखामणा करना चाहिये, कारण खमतखामणा किये बिना प्रतिक्रमणादिक क्रिया करना कल्पता नहीं है। इसलिए यदि किसी के साथ वैरभाव हुआ हो, तो उदायी राजा की तरह खमाना चाहिये। जैसे चंपानगरी में कुमारनन्दी नामक एक सुनार रहता था। वह जन्म से स्त्रीलोलुपी था। धन दे कर महास्वरूपवान पाँच सौ स्त्रियों के साथ उसने विवाह किया था। एक दिन हासा और प्रहासा नामक देवियों को देख कर वह मोहित हुआ। उसने देवियों से कहा कि तुम मेरे साथ भोगविलास करो। देवियों ने कहा कि यदि तू पंचशैलद्वीप में आ जाये, तो हमारे भोगयोग्य हो सकता है। इतना कह कर वे देवियाँ अपने स्थान पर चली गयीं। फिर सुनार ने गाँव में पटह बजवाया कि जो कोई मुझे पंचशैलद्वीप ले जायेगा, उसे मैं एक करोड़ सुवर्णमुद्राएँ दूंगा। यह सुन कर एक वृद्ध खलासी लोभ के वश से, घर के लोग द्रव्य से सुखी होंगे, ऐसा विचार कर बोला कि मैं ले जाऊँगा। फिर दोनों जहाज में बैठे। जहाज रवाना हुआ। आगे जाने पर एक वटवृक्ष दिखाई दिया। नाविक ने कहा कि इस बड़ पर तुम चढ़ जाना। मैं तो पानी के भँवर में जहाज डूबेगा, उसके साथ डूब जाऊँगा। तुम बड़ पर बैठे रहना। रात में भारण्डपक्षी आयेंगे। उनके पैरों में तुम अपने शरीर को बाँध देना। वे पंचशैलद्वीप में जायेंगे और वहाँ तुम्हें रख देंगे। फिर तुम बन्धनमुक्त हो कर हासा-प्रहासा देवियों के पास चले जाना। इतने में जहाज बड़ के पास आ गया। सुनार बड़ पर चढ़ गया और जहाज टूट गया। नाविक भी मर गया। भारंड पक्षियों के पैरों में बँध कर सुनार हासा-प्रहासा के पास गया और भोग भोगने के लिए याचना करने लगा। देवियों ने कहा कि तेरा शरीर अशुद्ध है। इस कारण से हम भोग नहीं कर सकतीं। यह कह कर उन्होंने उसे पुनः चंपानगरी में रख दिया और उससे कहा कि अभी जो देव हमारा पति है, उसका च्यवन होने वाला है। इसलिए तू यदि मर कर उस देव की शय्या में उत्पन्न हो जाये, तो काम सिद्ध हो सकता है। सुनार भी अज्ञान से चिता में पड़ कर मरने लगा। उस अवसर पर सुनार के