________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (435) बस इतना कहते ही सन्दूक खुल गयी। उसमें से प्रतिमा निकली। उसे ले जा कर मंदिर में उसकी स्थापना की। उसे प्रभावती रानी नित्य पूजने लगी। एक दिन प्रभावती रानी ने दासी के हाथों पूजा के श्वेत वस्त्र मँगवाये। दासी ने वस्त्र ला कर दिये, पर रानी को अपने दृष्टिभ्रम से वे वस्त्र लाल दिखाई दिये। इस कारण से वह दासी के साथ लड़ने लगी, पर थोड़ी देर बाद वे वस्त्र उसे सफेद दिखाई दिये। तब उसने जाना कि अब मेरी आयु छह महीने शेष है। इसलिए उसने राजा के पास दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी। राजा ने कहा कि तू देवलोक जाये तब कष्ट के समय मुझे सान्निध्य करना कबूल करे, तो मैं तुझे आज्ञा दूं। प्रभावती ने यह मान्य किया और राजा ने आज्ञा दी। फिर प्रभावती ने दीक्षा ली। संयमपालन कर आयु पूर्ण कर वह देवलोक गयी। फिर योगी का रूप कर के राजा को अमृतफल दिखा कर जंगल में ले गयी। वहाँ बहुत से योगी बैठे थे। वे राजा को मारने उठे। राजा ने डर कर देव को याद किया। देव ने आ कर राजा को वहाँ से उठा कर साधु के पास रखा। संसार में सच्चे आधारभूत तो ये ही हैं, ऐसा जान कर उनके पास श्रावक के व्रत ग्रहण कर राजा श्रावक हुआ। . ___ अब श्री वर्द्धमानस्वामी की प्रतिमा को प्रभावती रानी दीक्षा लेते समय देवदत्ता दासी को पूजने के लिए कह गयी थी। तदनुसार वह दासी नित्य पूजा करती थी। एक दिन कोई गंधार नामक श्रावक सब गाँवों के मंदिरों की वन्दना के लिए निकला। वह वीतभयपट्टन आया। उसने उस प्रतिमा की पूजा की। वहाँ गंधार श्रावक बीमार हो गया। देवदत्ता दासी ने उसकी चाकरी की। इससे उसका रोग मिट गया। इस उपकार के बदले उसने देवदत्ता दासी को दो गोलियाँ दे कर कहा कि इन गोलियों में से एक गोली खाने से तू महास्वरूपवती हो जायेगी और दूसरी गोली खाने से तू जिसे चाहेगी, वह पुरुष तेरे वश में हो जायेगा। इतना कह कर गंधार श्रावक वहाँ से चला गया। __ फिर देवदत्ता ने एक गोली खायी। इससे उसका रूप दिव्य हो गया और उसका नाम सुवर्णगुलिका पड़ गया। दूसरी गोली खा कर उसने चंडप्रद्योतन राजा की मन में चाहना की। गुटिका के अधिष्ठायकदेव ने उज्जयिनी जा कर चंडप्रद्योतन राजा के आगे दासी के रूप का वर्णन कर के उसे दासी का अनुरागी बनाया। फिर वह राजा अनलगिरि हाथी पर सवार हो कर वहाँ गया। उसने दासी को बुलाया। दासी ने कहा कि इस वीर प्रतिमा के बिना मुझसे आया नहीं जा सकता। इसलिए