________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (443) कर। रसोई तैयार कर के स्त्री से पुनः पूछता कि अब क्या करूँ? स्त्री कहती कि गद्दी बिछा कर पाट रख। यह काम भी कर के पूछता कि अब क्या करूँ? स्त्री कहती कि मेरी बाँह पकड़ कर मुझे गद्दी पर बिठा। वह बाँह पकड़ कर स्त्री को गद्दी पर बिठा कर पूछता कि अब क्या करूँ? स्त्री कहती कि रसोई परोस। रसोई परोस कर पूछता कि अब क्या करूँ? स्त्री कहती कि मक्खियाँ उड़ा। मक्खियाँ उड़ा कर पूछता कि अब क्या करूँ? स्त्री कहती कि मल-मूत्र फेंक आ। मल-मूत्र फेंक कर कहता कि अब क्या करूँ? स्त्री कहती कि मैं सो रही हूँ। तू मेरे पाँव दबा। तब वह पगचंपी करने लगता। यह देख कर लोग बोले कि यह स्त्रीकिंकर है। वैसे ही हे देवदत्त! तू भी उसके जैसा हो, तो मैं याचना नहीं करता। देवदत्त ने कहा कि मैं उसके जैसा नहीं हूँ। एक कुलपुत्र स्त्री के वश हो कर उसके वस्त्रप्रमुख धोने का काम नित्य करता था। लोगों ने उसका नाम तीर्थस्नात रखा। इसी प्रकार पाँचवें का नाम गधापरखी रखा। एक कुलपुत्र स्त्री के वश हुआ। उसके पुत्र हुआ। स्त्री कहती कि बच्चे को हगा लाओ। वह नित्य बच्चे को हगाता और स्नान कराता। यह देख कर लोगों ने उसका नाम हगनीया रखा।। - इसलिए उसके जैसा यदि तू स्त्री के वश में न हो, तो मैं तेरे पास याचना करूँ। देवदत्त ने कहा कि मैं वैसा नहीं हूँ। आप सुख से माँगिये। उस समय दूसरे पंच हास्यपूर्वक बोले कि साधुजी! स्त्री के वश हुए पुरुष के सब दोष इसमें हैं। तब देवदत्त ने कहा कि भगवन्! ये मेरी हँसी उड़ा रहे हैं। आपको जो चाहिये, वह सुख से माँगिये। साधु ने कहा कि घी और शक्कर सहित सेवई वहोराओ। फिर देवदत्त ने कहा कि चलिये, मैं आपको वहोराता हूँ। ____ इतना कह कर वह साधु को अपने साथ ले कर घर आया। रास्ते में साधु ने * कहा कि तुम्हारी स्त्री तो मेरे साथ लड़ चुकी है। इस पर देवदत्त ने कहा कि आप घर के बाहर खड़े रहना और मैं बुलाऊँ तब आना। फिर साधु बाहर खड़ा रहा। देवदत्त घर में जा कर स्त्री से कहने लगा कि आज ब्राह्मणों को भोजन के लिए कहा है। वे भोजन करने आयेंगे। घर में कुछ पका हुआ है या नहीं? उसने कहा कि सेवई तैयार हैं। देवदत्त ने स्त्री से कहा कि सीढ़ी पर चढ़ कर मेड़ी पर से घी-शक्कर ले आ। स्त्री घी-शक्कर लेने सीढ़ी पर चढ़ कर मेड़े पर गयी। देवदत्त ने साधु को अन्दर बुलाया। साधु ने कहा कि हे देवदत्त! यह सीढ़ी जरा अलग कर दो। देवदत्त