________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (441) क्रोधपिंड से संबंधित घेवरिया मुनि का दृष्टान्त हस्तिकल्प नगर में एक साधु मासिक तप के पारणे में गोचरी करने के लिए ब्राह्मणों में किसी के यहाँ मृतक-भोज था, वहाँ गया। ब्राह्मण घेवर खा रहे थे। साधु बहुत देर तक खड़ा रहा, पर किसी ने साधु को नहीं दिया। तब साधु ने क्रोध कर के कहा कि आज के भोजन में न दो, तो पुनः भोजन हो तब देना। ऐसा कह कर चला गया। इतने में दूसरे महीने पारणे के दिन पुनः किसी ब्राह्मण की मृत्यु हुई। उसके भोजन में वही साधु पारणा करने के लिए पुनः गोचरी आया, पर किसी ने वहोराया नहीं। तब पुनः क्रोध से बोला कि तीसरे भोजन में वहोराना। यह कह कर चलता बना। तीसरे महीने में भी किसी की मृत्यु हुई। उसके भोजन में भी किसी ने नहीं वहोराया। तब साधु क्रोध से चौथे भोजन में वहोराने का बोला। ये शब्द किसी बूढ़े के कानों में पड़े। बूढ़े ने गृहस्वामी से कहा कि इस साधु को घेवर दे कर खुश करो, नहीं तो और कोई मरेगा। ऐसा समझ कर साधु को बुला कर घेवर वहोराये। ___ जैसे इस साधु ने क्रोध से घेवर वहोरे, वैसे अन्य साधुओं को कभी वहोरना नहीं चाहिये। . मानपिंड पर सेवैया मुनि का दृष्टान्त कोशल देश में गिरिपुष्य नामक नगर में सेवइयों का पर्व आया, तब युवान साधु इकट्ठे हुए। उनमें से एक साधु बोला कि आज तो सेवैया पर्व है, इसलिए सेवई वहोर कर लायें, इसमें कौनसी बड़ी बात है? परन्तु कल सुबह शक्कर-घी सहित सेवई ला कर जो साधुओं को भोजन कराये, उसे लब्धिवान जानना। तब एक शिष्य अभिमान से बोला कि यदि मैं कल सेवई ला कर सब साधुओं को भोजन कराऊँ, तो ही मेरा नाम सच्चा जानना। दूसरे दिन बड़े-बड़े पात्र झोली में रख कर वह गोचरी गया। वहाँ एक सेठ के घर सेवई देख कर माँगने लगा। पर सेठानी लोभी थी, इसलिए बोली कि जा, जा, तुझे सेवई नहीं मिलेंगी। इस प्रकार ललकार कर उसे निकाल दिया। तब चेले ने कहा कि तू देख तो सही। मैं तेरे यहाँ से ही किसी भी तरह सेवई अवश्य ले कर जाऊँगा। सेठानी ने कहा कि यदि तू सेवई ले जाये, तो मेरी नाक गयी जानना। परन्तु जब तक मेरी नाक है, तब तक तो तुझे सेवई ले जाने नहीं दूंगी। साधु ने वहाँ से निकल कर आगे जा कर किसी से पूछा कि यह घर किसका है? इस घर का मालिक कहाँ है? उसने उत्तर दिया कि यह देवदत्त का घर है। वह