________________ (436) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध पुनः उज्जयिनी जा कर चंडप्रद्योतन राजा ने उस प्रतिमा के जैसी दूसरी प्रतिमा तैयार करवायी। फिर उसे ले कर पुनः वीतभयपट्टन आ कर उसने वह प्रतिमा वहाँ रखी। फिर देव द्वारा दी गयी मूल प्रतिमा दासी सहित ले कर वह उज्जयिनी चला गया। सुबह के समय उदायी राजा ने अपने हाथियों का मद उतरा हुआ देख कर यह जान लिया कि अनलगिरि हाथी पर बैठ कर चंडप्रद्योतन राजा यहाँ आया था। वह सुवर्णगुलिका दासी और प्रतिमा ले कर चला गया। फिर उदायी राजा ने दस मुकुटुबद्ध राजा और सेना साथ ले कर उज्जयिनी की ओर प्रयाण किया। मार्ग में जेसलमेर के ब्रह्मसर के पास आया, पर वहाँ पानी नहीं मिला। इससे वह निराश हो गया। फिर उसने प्रभावती देव को याद किया। उसने आ कर वहाँ अखूट पानी भर दिया। उस स्थान पर पुष्करप्रमुख अनेक तालाब पानी से भर गये। .. ' फिर उदायी राजा ने उज्जयिनी की सीमा में डेरा डाला। उसने चंडप्रद्योतन राजा के पास दूत भेजा और उसे कहलवाया कि यदि तू दासी नहीं लौटाये, तो भले ही रख, पर हमारे प्रतिमाजी हमें लौटा दे। चंडप्रद्योतन ने प्रतिमा नहीं दी और चौदह मुकुटबद्ध राजाओं को साथ ले कर वह लड़ने आया। अनलगिरि हाथी को अलग रख कर लड़ाई करने का प्रस्ताव हुआ, तो भी चंडप्रद्योतन अनलगिरि हाथी पर चढ़ कर संग्राम में आया। आपस में युद्ध करते करते अन्त में चंडप्रद्योतन हार गया। उसे अनलगिरि हाथी पर से उतार कर, बाँध कर और उसके ललाट पर 'दासी का पति चंडप्रद्योतन है' ऐसा दाग दे कर उदायी राजा प्रतिमा लेने गया। पर प्रतिमा वहाँ से नहीं उठी। इतने में आकाशवाणी हुई कि प्रतिमा मत ले जाना, क्योंकि वीतभयनगर में धूल का ढेर गिरने वाला है। .. फिर प्रतिमा को वहीं रख कर चंडप्रद्योतन को साथ ले कर उदायी राजा अपने नगर की तरफ चला। मार्ग में पर्युषण पर्व आया। उदायी राजा ने वहाँ पड़ाव किया। पर्युषण किये। उसने स्वयं उपवास कर के रसोई करने वाले से कहा कि चंडप्रद्योतन को जो रुचे वह रसोई कर के खिलाना। यह कह कर उदायी राजा जिनपूजादिक करनी में प्रवृत्त हुआ। रसोई करने वाले ने चंडप्रद्योतन से पूछा कि आपके लिए कैसी रसोई बनाऊँ? चंडप्रद्योतन ने कहा कि उदायी कहे, वह बनाओ। रसोइये ने कहा कि उन्हें तो आज पर्युषण पर्व है, इसलिए उपवास है। चंडप्रद्योतन ने विचार किया कि आज मुझे जहर देने का विचार रखा है, इसलिए अलग रसोई कराते हैं। इस भय से उसने कहा कि मैं भी आज उपवास करूँगा। उदायी राजा मेरा साधर्मिक भाई है। मैं भी यही धर्म पालता हूँ। रसोइये ने उदायी राजा से यह बात कही।