________________ (432) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध करता नहीं है। फिर एक दिन उसने मंडल नहीं किये और उसे रात में मात्रा की बहुत बाधा हुई, पर उसने परठा नहीं। फिर उस देव ने उद्योत किया। शिष्य ने जगह देख कर मात्रा को परठा। इसलिए यदि कोई मंडल देख कर परठवणा करेगा, तो उसे देव मदद करेगा, ऐसा निश्चय कर के क्षुल्लक भी पारिष्ठापनिका समिति में सावधान हुआ। तीन गुप्ति के पालन पर भिन्न भिन्न दृष्टान्त (1) इसी तरह चौमासे में तीन गुप्ति का पालन भी अच्छी तरह करना चाहिये। मनगुप्ति पर कोंकण साधु का दृष्टान्त कोंकण मुनि को काउस्सग्ग में बहुत देर लगने से गुरु ने पूछा कि अधिक देर क्यों लगी? साधु ने कहा कि जीवदया का चिन्तन करने से देर हो गयी। गुरु ने कहा कि कैसी जीवदया का चिन्तन किया? साधु ने कहा कि मेरे घर में लड़के आलसी हैं। वे खेत में सूड निदानादिक नहीं करेंगे, तो धान्य कम उत्पन्न होगा। इससे वे दुःखी होंगे। गुरु ने कहा कि तुमने सावद्य चिन्तन किया। इसलिए मिच्छा मि दुक्कडं दो। यह सुन कर साधु ने मिच्छा मि दुक्कडं दिया। (2) वचनगुप्ति पर गुणदत्त साधु का दृष्टान्त- गुणदत्तं साधु एक दिन अपनी संसार से संबंधित माता को दर्शन देने-वंदाने जा रहा था। रास्ते में चोर मिले। उन्होंने साधु को पकड़ा और कहा कि इस रास्ते से बारात आयेगी। उन लोगों के आगे तुम हमारा नाम मत लेना। साधु ने कहा कि मैं तो नहीं बोलूँगा। चोरों ने उसे छोड़ दिया। वह अपने स्थान पर जा कर अपने परिवार को दर्शन दे कर उनसे वन्दना करा कर पुनः बारात के साथ उसी मार्ग से आया। चोरों ने बारात लूट ली। फिर वे कहने लगे कि यह साधु कैसा सत्यवादी है कि अपने घर के लोगों से भी यह नहीं कहा कि चोर रास्ते में बैठे हैं। यह वचन साधु की माता ने सुना। वह गुणदत्त साधु से कहने लगी कि हे दुष्ट! तूने तेरे हाथों चोरों को माल लुटा दिया। तूने हमें पहले से क्यों नहीं कहा? साधु को बहुत कष्ट होते देख कर चोरों ने लूटा हुआ सब धन वापस दे दिया। बारात वाले खुश हो गये, पर साधु कुछ नहीं बोला। (3) कायगुप्ति पर अर्हन्नक साधु की कथा- अर्हन्नक मुनि विहार करते हुए किसी स्थान पर पानी का नाला बहते देख कर विचार करने लगे कि यदि मैं इस नाले में पैर रखेंगा, तो जीव विराधना होगी, इसलिए कूद कर निकल जाऊँ। यह सोच कर वे कूद कर उस पार गये। किसी देव ने उनके पैर छेद डाले। इससे वे दुःखी हुए। देव ने कहा कि अब आगे से कभी कूद कर मत जाना। कदाचित् जीव