________________ (430) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध की क्षमायाचना न करे, तो जैसे तंबोली सड़े हुए पान को बाहर फेंक देता है, वैसे ही क्रोधी साधु-साध्वी को भी संघ से बाहर निकाल देना चाहिये। यह अधिकरण न उदीरने से संबंधित तेईसवीं समाचारी जानना।। 24. वर्षाकाल में रहे हुए साधु-साध्वी को यदि पर्युषण के दिनों में कलह हुआ हो, कटुक बोलना पड़ा हो, उद्वेग किया हो, तो शिष्य को जा कर रत्नाधिक (आचार्य) प्रमुख को खमाना चाहिये और आचार्यादिक भी शिष्य को खमाये। इस तरह स्वयं खमना और अन्य को खमाना। स्वयं उपशम करना और दूसरे को भी उपशम कराना। अनेक प्रकार से राग-द्वेष रहित होना चाहिये। जो क्रोधादिक का उपशमन नहीं करता, वह ज्ञानादिक का विराधक होता है। ऐसा जान कर नियम से उपशम करना चाहिये। भगवान उपशम को ही सार पदार्थ कहते हैं, इसलिए उपशम अवश्य अंगीकार करना चाहिये। यह परस्पर खमत-खामणा से संबंधित चौबीसवीं समाचारी जानना। पाँच समिति के पालन पर भिन्न-भिन्न दृष्टान्त (1) साधु-साध्वी को चौमासे में विशेष रूप से पाँच समिति का पालन करना चाहिये। प्रथम इरियासमिति पालने से संबंधित वरदत्त मुनि का दृष्टान्त एक दिन इन्द्र महाराज ने अपनी सभा में कहा कि आज भरतक्षेत्र में वरदत्त मुनि के समान इरियासमिति का पालन करने वाला कोई नहीं है। इन्द्र के मुख से वरदत्त मुनि की प्रशंसा सुन कर कोई एक देव उनकी परीक्षा लेने आया। उसने हाथी का रूप बना कर सैंड में पकड़ कर मुनि को आकाश में उछाला और देवमाया से जमीन पर बहुत सी छोटी-छोटी मेंढकियाँ निर्माण की। आकाश से नीचे गिरते हुए मुनि विचार करने लगे कि मुझे तो मरने का भय नहीं है, पर ये मेंढकियाँ मेरे शरीर के गिरने से मर जायेंगीं। इनकी विराधना न हो तो अच्छा है। ऐसा जान कर आकाश से गिरते हुए भी ओघे (रजोहरण) से जमीन पूँजने लगे। यह देख कर देव ने जाना कि धन्य है इसे, जो इस तरह जीव-विराधना से डरता है। फिर उस देव ने प्रकट हो कर अपना अपराध खमाया। फिर वह अपने स्थान पर गया। (2) भाषासमिति पर संगत साधु का दृष्टान्त- जिस नगर में संगत साधु थे, उस नगर के बाहर किसी शत्रु राजा ने सेना ला कर नगर को घेर लिया। फिर संगत