Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 459
________________ (426) ... श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सूत्र सुन कर के जानते रहना और देखते रहना। (2) दूसरा पनक सूक्ष्म याने नीलफूल (फूलण)। यह काली, हरी, लाल, पीली और सफेद ऐसे पाँच प्रकार की होती है। ये जीव जिस वस्तु में पड़ते हैं, उस वस्तु के. रंग जैसे देखने में आते हैं। इससे छद्मस्थ को नजर नहीं आते। इसलिए इन्हें भी बार बार देखते-जाँचते रहना। (3) तीसरा बीज सूक्ष्म- ये भी काले, नीले, सफेद, पीले और लाल इस तरह पाँच प्रकार के हैं। ये शालिप्रमुख के जैसे वर्ण वाले होते हैं। ये भी छद्मस्थ के जानने में नहीं आते, इसलिए इनकी भी बार बार पडिलेहणा करना। (4) चौथा हरित सूक्ष्म याने नीलोत्री। यह भी सूक्ष्म और पूर्वोक्त पाँच रंग वाली होती है। पृथ्वी के रंग जैसी बहुत सूक्ष्म होती है। साधु-साध्वियों को इसकी भी बहुत सावधानीपूर्वक आँखों से देख कर पडिलेहणा करनी चाहिये। (5) पाँचवाँ पुष्प सूक्ष्म (सूक्ष्म फूल)। ये पूर्वोक्तं रीति से पाँच रंग के होते हैं। ये वृक्ष का जैसा रंग होता है, वैसे रंग वाले होते हैं। ये भी जानने में नहीं आते। इनकी भी पडिलेहणा करना। (6) छठा अंड सूक्ष्म- इनमें प्रथम मधुमक्खी के अंडे, दूसरे कलातरा (माँकडी) के अंडे, तीसरे कीड़ी के अंडे, चौथे गिरोली (छिपकली) के अंडे और पाँचवें काकीड़ा (गिरगिट) के अंडे। इन सब जीवों के अंडे भी सूक्ष्म होते हैं। इसलिए इन्हें बार बार देखना और पडिलेहणा करना। . ___(7) सातवाँ गृह सूक्ष्म- ये भी पाँच प्रकार के हैं। एक भूमि में गद्दहिया जैसे घर किये हुए होते हैं। दूसरा पानी सूख जाने के बाद जमीन पर पपड़ी पड़ती है वह, तीसरा बिल, चौथा ताड़प्रमुख वृक्षों के मूल में छोटे छोटे घर होते हैं वे और पाँचवाँ भ्रमरों के घर। इन पाँच प्रकार के घरों की पडिलेहणा करना। (8) आठवाँ स्नेह सूक्ष्म- ये भी पाँच प्रकार के हैं। एक ओस का पानी, दूसरा हेमारा का पानी, तीसरा धुंहरी का पानी, चौथा करों (ओलों)

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