Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 460
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (427) का पानी और पाँचवाँ डाभप्रमुख की नोक पर रहा हुआ पानी। यह पाँच प्रकार का पानी है। छद्मस्थ इसे भी जान कर पडिलेहणा करे। यह आठ सूक्ष्म जीवों से संबंधित सोलहवीं समाचारी जानना। 17. बरसात में रहे हुए साधु-साध्वी को जब गृहस्थों के घर गोचरी (आहारप्रमुख) लाने जाना हो, तब आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि, गणधर, गणावच्छेदक तथा जिनकी आज्ञा में चलते हों, उन्हें पूछ कर ही जाना। उनसे यह कहना कि हे भगवन्! आपकी आज्ञा हो, तो गृहस्थों के घर आहार-पानी आदि लेने जाऊँ। वे आचार्य आदिक यदि जाने की आज्ञा दें तो जाना कल्पता है, बिना आज्ञा नहीं। शिष्य पूछता है कि ऐसा किसलिए? गुरु कहते हैं कि आचार्य आदिक जो साधु अमुक दिशा में गया, उसे अधिक समय क्यों लगा? इत्यादिक उपद्रव टालने का उपाय जानते हैं। . इसी तरह यदि श्री जिनचैत्य में दर्शन करने, स्थंडिलभूमि या अन्य किसी काम के लिए जाना हो या गाँव गाँव विचरना हो, तो भी पूछे बिना नहीं जाना तथा चौमासे में रहे हुए साधु-साध्वी को विगय का आहार करने की इच्छा हो, तो आचार्यादिक से पूछे बिना विगय लेना कल्पता नहीं है। इसलिए आचार्यादिक से पूछना कि हे महाराज! आपकी आज्ञा हो तो मैं दूध ' प्रमुख विगय गृहस्थ के घर से ला कर आहार करूँ। आचार्यादिक कहें कि अमुक परिमाण में विगय ला कर आहार करना। शिष्य आशंका करता है कि आज्ञा लेने का क्या प्रयोजन है? गुरु उत्तर देते हैं कि विगयादिक खाना या नहीं खाना, उससे होनेवाले गुण तथा अवगुण ये सब आचार्यादिक जानते हैं, इसलिए पूछना चाहिये। - तथा चौमासे में कोई साधु अपने आरोग्य के लिए औषधि करने की चाहना रखता हो, तो आचार्यादिक को पूछ कर ही औषधि करना कल्पता है। इसी प्रकार चौमासे में कोई साधु शुभ, कल्याणकारी, उपद्रवरहित, धन्यकारी, मंगलकारी, शोभावंत और महाप्रभावक ऐसा तप करने की चाहना रखता हो, तो आचार्यादिक से पूछ कर ही तप करना तथा कोई

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