________________ (292) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध साधु के ऐसे वचन सुन कर उसने साधु को छोड़ दिया। साधु वहाँ से विहार कर गये। ___अब जीवयशा का नशा उतर गया। उसके मन में शंका हुई कि साधु का वचन झूठा नहीं होता। फिर उसने वह बात एकान्त में अपने पति से कही। कंस ने भी उसकी बात सत्य मानी। पर मुनि का वचन झूठा करने के लिए उसने सोचा कि यह बात कोई जान न ले, इस प्रकार इसका उपाय करना चाहिये। यह सोच कर उसने एक दिन वसुदेवजी को प्रसन्न किया। तब वसुदेवजी ने कहा कि हे कंस ! मैं तुम पर तुष्टमान हूँ, इसलिए तुम जो माँगोगे, वह मैं तुम्हें दूँगा। यह सुन कर कंस ने कहा कि हे मित्र ! यदि तुम मुझ पर प्रसन्न हो, तो देवकी के पहले सात गर्भ मुझे देना। यह बात वसुदेवजी ने सरल मन से मान ली और कंस से कहा कि मैं तुम्हें सातों गर्भ दे दूँगा। इस तरह वसुदेवजी वचन से बँध गये। फिर उन्होंने यह बात देवकीजी से कही। तब देवकीजी ने अतिमुक्तक मुनि के कहे हुए वचन वसुदेवजी को सुनाये और कहा कि यह कंस अपने पुत्रों को ले कर उन्हें मार डालेगा। यह सुन कर वसुदेवजी को बहुत पछतावा हुआ। पर वचन से बँध गये थे, इसका क्या उपाय हो सकता है? सत्पुरुष का बोलना बदलता नहीं है। इसी अवसर में भद्दिलपुर नगर में नागसेठ रहता था। उसके सुलसा नामक स्त्री थी। उसे मृतवत्सा दोष था। इसलिए वह मरे हुए पुत्रों को जन्म देती थी। उसने अट्ठम तप कर हरिणैगमेषीदेव की आराधना की। तीसरे उपवास में वह देव प्रकट हो कर बोला कि मुझे क्यों याद किया है? तब सुलसा ने कहा कि हे देव ! मुझे मृतकपुत्र जन्मते हैं। उन्हें जीवित कर दो। तब देव ने कहा कि किसी का कर्म दूर करने में मैं समर्थ नहीं हूँ। इसलिए तेरे पुत्र तो जीवित नहीं होंगे। यह बात निश्चयात्मक है, तो भी तुम्हारी पुत्र से संबंधित इच्छा मैं पूरी करूँगा। यह कह कर देव चला गया। फिर कर्मयोग से देवकीजी और सुलसा इन दोनों को एक साथ गर्भ रहा और एक साथ ही जन्मा। तब हरिणैगमेषीदेव ने देवकीजी के जीवित पुत्र ले जा कर सुलसा के पास रख दिये और सुलसा के मरे हुए पुत्र देवकीजी के पास ला कर रखे। उन मरे हुए बालकों को कंस के चौकीदारों ने ले जा कर कंस को सौंपा। कंस ने उन्हें शिला पर पछाड़ कर मार डाला। इस तरह देवकीजी के छह पुत्र सुलसा के पास बड़े हुए और सुलसा के मृतक पुत्र देवकीजी के पास से ले कर कंस ने मार डाले।