________________ (368) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उस समय तीन वर्ष और साढ़े आठ महीने चौथे आरे के शेष रहे थे और पाँचवें आरे के इक्कीस हजार वर्ष तथा छठे आरे के इक्कीस हजार वर्ष इस तरह दोनों आरों के मिल कर बयालीस हजार वर्ष एक कोड़ाकोड़ि सागरोपम में कम हुए। इसलिए बयालीस हजार और तीन वर्ष साढ़े आठ महीने कम ऐसा एक कोड़ाकोड़ि सागरोपम काल चौथे आरे का बीतने पर महावीर प्रभु मोक्ष गये। उनके पश्चात् नौ सौ अस्सी वर्ष बीतने पर यह पुस्तक श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने लिखी और नौ सौ तिरानबेवें वर्ष में श्रीसंघ में इसका वाचन हुआ। __ जैनाचार्य श्रीमद् भट्टारक विजय राजेन्द्रसूरीश्वर-सङ्कलिते श्री कल्पसूत्र बालावबोधे अष्टमं व्याख्यानं समाप्तम्।। नवम व्याख्यान श्री स्थविरावली अधिकार श्री महावीरस्वामी के ग्यारह गणधर और नौ गच्छ उस काल में उस समय में भगवान श्री महावीरस्वामी के नौ गच्छ और ग्यारह गणधर हुए। यहाँ शिष्य प्रश्न पूछता है कि हे गुरु महाराज! मर्यादा तो यह है कि जितने गणधर हों, उतने ही गच्छ भी होने चाहिये, पर आप तो नौ गच्छ और ग्यारह गणधर फरमाते हैं, इसका कारण क्या है? गुरु कहते हैं कि श्री महावीरस्वामी के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार हुए। वे गौतम गोत्रीय थे और पाँच सौ साधुओं को वाचना देते थे। इसलिए उनका एक गच्छ था। जिसकी वाचना एक हो, उसे गच्छ कहते हैं।