________________ (396) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सुप्रतिबद्ध। इन्होंने कोटि बार सूरिमंत्र का जाप किया था। ये काकन्दी नगरी में जन्मे थे और इनका व्याघ्रापत्य गोत्र था। इनके पाट पर 10. श्री आर्य इन्द्रदिन्नसूरि कौशिक गोत्रीय हुए। उनके पाट पर 11. श्री आर्य दिन्नसूरि गौतम गोत्रीय हुए। उनके पाट पर 12. श्री आर्य सिंहगिरि कौशिक गोत्रीय हुए, जिन्हें जातिस्मरण ज्ञान हुआ था। उनके पाट पर 13. श्री आर्य वज्रसूरि गौतम गोत्रीय हुए। उनके पाट पर 14. श्री आर्य वज्रसेनसूरि उत्कौशिक गोत्रीय हुए। उनके चार शिष्य हुए- एक नाइल, दूसरा पोमिल, तीसरा जयंत और चौथा तापस। इन चारों के नाम से चार शाखाएँ निकलीं। वज्रस्वामी और वज्रसेनसूरि श्री आर्य सिंहगिरि से तीन पाट तक का संक्षिप्त स्वरूप बताते हैं- श्री सिंहगिरि के पास सुनन्दा के भाई समित तथा सुनन्दा के पति धनगिरि ने दीक्षा ली। सुनन्दा गर्भवती थी, उसे उन्होंने तुंबवनगाँव में रख दिया। फिर सुनन्दा के पुत्र हुआ। उस समय पड़ोसी की स्त्री ने कहा कि यदि आज इसके पिता ने दीक्षा नहीं ली होती, तो इस पुत्र के जन्म का महामहोत्सव होता, पर अब पिता के बिना अन्य कौन आ कर महोत्सव करे? यह बात सुन कर उस बालक को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। तब बालक ने जाना कि यदि मेरी माता को मैं प्रसन्न रखुंगा, तो यह मुझे नहीं छोड़ेगी, इसलिए किसी तरह यह ऊब जाये, ऐसा कुछ उपाय करना चाहिये। इससे यह मुझे छोड़ देगी। फिर मैं दीक्षा ले लूँगा। ऐसा जान कर माता को उद्वेग कराने के लिए उसने नित्य रुदन करना शुरु किया, क्योंकि उसका चारित्र लेने का भाव चल रहा था। फिर बालक के रुदन से माता बहुत उद्वेग करने लगी और उसने सोचा कि इस पुत्र का मैं क्या करूँ? इसे किसी को दे दूँ तो ठीक रहेगा। इसी अवसर में सिंहगिरि आचार्य वहाँ पधारे। जब धनगिरि गोचरी जाने लगे, तब गुरु ने ज्ञानदृष्टि से विचार कर कहा कि आज तुम्हें गोचरी