Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 445
________________ (412) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उस ब्राह्मण ने उनकी माता के पास जा कर गन्ने दे कर कहा कि आपका पुत्र आर्यरक्षित मुझे रास्ते में मिला था। माता ने जाना कि मेरे पुत्र को शकुन तो अच्छे हुए हैं। इसलिए वह साढ़े नौ पूर्व पढ़ेगा। ऐसा मन में जान लिया। . . अब आर्यरक्षितजी जहाँ तोसलीपुत्र आचार्य थे, वहाँ गये। वे विचार करने लगे कि इन्हें मैं वन्दना किस तरह करूँ? यह सोच कर वे उपाश्रय के बाहर बैठ गये। इतने में ढड्ढर श्रावक निसीहि कह कर उपाश्रय में जा कर ऊँचे स्वर में वन्दन करने की इरियावहीप्रमुख क्रिया करने लगा। यह सुन कर सब विधि आर्यरक्षितजी सीख गये। फिर गुरु के पास आ कर उसी विधि से गुरु को वन्दन कर विनयपूर्वक आगे बैठे। __ यह कोई नया श्रावक है, पर वन्दन की विधि तो बराबर जानता है, ऐसा जानः कर गुरु ने ढड्ढर श्रावक से पूछा कि यह कौन है? ढड्ढर ने पहचान लिया कि यह गुरु का भानजा है। फिर गुरु से कहा कि यह तो आर्यरक्षित है, आपका भानजा है। फिर गुरु ने उसे धर्मोपदेश दिया। तब आर्यरक्षित ने कहा कि मुझे दीक्षा दीजिये। मेरी माता ने मुझे दृष्टिवाद पढ़ने की आज्ञा दी है। गुरु ने लोकभय से अन्य स्थान पर जा कर उन्हें दीक्षा दी और अपने पास जितनी विद्याएँ थी, वे सब उन्हें पढ़ायीं। फिर अधिक पूर्व पढ़ने के लिए वज्रस्वामी के पास भेज दिया। रास्ते में उज्जयिनी नगरी में उन्हें श्री भद्रगुप्तसूरि मिले। उन्होंने कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मुझे अनशन करना है, इसलिए अनशन में मेरी मदद कर फिर आगे जाना। गुरु के ये वचन सुन कर वे अनशन में सहायक हुए। भद्रगुप्तसूरिजी ने कहा कि तुम वज्रस्वामी के पास पढ़ना अवश्य, पर रात में उनके साथ रहना मत। अलग उपाश्रय में रहना। वज्रस्वामी के साथ जो एक रात भी रहता है, वह यदि सोपक्रमी आयु वाला हो, तो भी उनके साथ ही उसका निधन होगा। यह बात सुन कर 'तह त्ति' कह कर उन्हें संथारा करा कर आर्यरक्षितजी श्री वज्रस्वामी के पास आये। रात को नगर के बाहर रहे। उसी रात में श्री वज्रस्वामीजी ने स्वप्न में देखा कि मेरे पास पात्र में दूध भरा हुआ था, उसे कोई अतिथि आ कर पी गया। स्वल्पमात्र दूध शेष रहा। सुबह के समय आर्यरक्षितजी उनके पास आये। वज्रस्वामी ने पूछा कि तुम कहाँ से आ रहे हो? तब सब हकीकत बता कर कहा कि मैं अन्य उपाश्रय में रह कर आपके पास पढुंगा। वज्रस्वामी ने पूछा कि मेरे पास पढ़ना और अन्य उपाश्रय में रहना, ऐसा क्यों? तब भद्रगुप्त आचार्य द्वारा बतायी गयी सब बात उन्हें बता दी। तब वज्रस्वामीजी

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