________________ (418) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध गया। हंस के मारे जाने की सब हकीकत गुरु को बता कर परमहंस भी प्राणमुक्त हो गया। इस घटना से आचार्य को बहुत क्रोध चढ़ा। वे उसी समय सूरपाल राजा के नगर की तरफ चल पड़े। थोड़े ही समय में वहाँ पहुँच कर राजा द्वारा बताये गये क्षात्रतेज को असीम धन्यवाद दिया। फिर सूरपाल के दरबार में ही बौद्ध मठपति के साथ वाद-विवाद कर के अपनी प्रबल विद्वत्ता से उन्होंने बौद्धों को परास्त किया। उसी समय वह मठपति खौलते तेल की कड़ाही में जा गिरा और देखते देखते तल दिया गया। इस तरह एक के बाद एक बौद्ध भजिये की तरह कड़ाही में तले जाने लगे। इतने में दो जैन मुनि वहाँ आये। उन्होंने एक पत्र हरिभद्राचार्य के हाथ पर रखा। उसमें लिखा था कि- वीतराग के वचन को जो समझता है, उसमें क्रोध नहीं होता। पत्र भेजनेवाले उनके गुरु जिनभद्र ही थे। पत्र पढ़ते ही हरिभद्र शान्त हो गये। वहाँ से रवाना हो कर वे अपने गुरु के पास आये और क्रोध में हुए अकार्य का प्रायश्चित्त माँगा। गुरु ने कहा कि 1444 बौद्धों का संहार करने का तुम्हारा संकल्प था, इसलिए इतने ही ग्रंथ बना कर तुम निर्मल हो जाओ। हरिभद्राचार्य ने यह मंजूर किया। हंस और परमहंस सांसारिक संबंध से उनके भानजे थे। दूसरे हरिभद्रसूरि विक्रम संवत् 962 में हुए हैं। उनके शिष्य सिद्धर्षि गणि थे। वे बौद्धों के पास इक्कीस बार गये और आये। उन्हें प्रतिबोध देने के लिए इन्होंने शक्रस्तव की ललितविस्तरावृत्ति बनायी। ___ तीसरे हरिभद्रसूरि विक्रम संवत् की बारहवीं सदी में हुए। उनके बनाये हुए मुनिपति चरित्र आदिक ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। तथा श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण भी स्थविर हुए हैं। उन्होंने विशेषावश्यक भाष्य बनाया है। ___इसी प्रकार श्री शीलांकाचार्य, अभयदेवसूरि और मलयगिरिप्रमुख टीकाकार भी हुए हैं। __ये सब स्थविर जानना। इति स्थविरावली-शेष संबंधः। अट्ठाईस प्रकार की साधुसमाचारी 1. उस काल में उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीरस्वामी आषाढ़ सुदि पूनम से एक महीना और बीस दिन बरसात के जाने के बाद पर्युषण