Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 450
________________ - श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (417) जीने की सीढ़ियों पर जिनप्रतिमा रखी। उस पर पाँव रख कर सब बौद्धशिष्य तो चले गये, पर हंस और परमहंस जिनप्रतिमा देख कर प्रतिमा के हृदय पर खड़ी से जनेऊ कर के निकल गये। बौद्धों ने जाना कि ये जैनी हैं और हंस-परमहंस भी जान गये कि ये हमें अवश्य मार डालेंगे। फिर मरणभय से वे दोनों अपनी-अपनी पढ़ने की पोथियाँ हाथ में ले कर अपने देश की तरफ चल पड़े। बौद्धों ने दोनों को मारने के लिए राजा के सिपाही भेजे। उन्होंने जा कर प्रथम हंस को मार डाला और भागते हुए परमहंस को भी चित्तौड़ के पास मार डाला। यह समाचार सुन कर हरिभद्रसूरिजी महाकोपायमान हुए। एक तेल की कड़ाही उबाल कर वे मन्त्र जपने लगे और एक एक कंकर कड़ाही में डालने लगे। उस मंत्रित कंकर के प्रभाव के बौद्धों का एक एक तपस्वी उस कड़ाही में गिर कर भस्म होने लगा। इस तरह उन्होंने 1444 बौद्धों का हनन किया। उस समय एक श्रावक बोला कि- 'जइ जलइ जलउ लोए।' यह सुनते ही उनका क्रोध उतर गया। . कई ग्रंथों में ऐसा भी लिखा है कि याकिनी महत्तरा साध्वी ने एक श्राविका को ला कर गुरु से कहा कि इसने पंचेन्द्रिय जीव का वध किया है। इसे क्या दंड देना चाहिये? गुरु बोले कि पाँच कल्याणकों का दंड देना चाहिये। तब साध्वी ने कहा कि महाराज! एक पंचेन्द्रिय के वध का इतना बड़ा दंड दिया जाता है, यह आप जानते हैं, तो फिर इन बौद्धों को क्यों मारते हैं? तब गुरु का क्रोध उतर गया। फिर इसके प्रायश्चित्त के लिए उन्होंने पंचाशकप्रमुख 1444 प्रकरण ग्रंथ बनाये। - एक पट्टावली में ऐसा भी लिखा है कि- हंस और परमहंस अवसर देख कर * बौद्ध मठ से निकल गये। मठ के कुलपति ने इन दोनों को पकड़ने के लिए पीछे से बड़ा लश्कर भेजा। लश्कर को आते देख कर हंस ने कहा कि "हे परमहंस! तू पास के नगर में चला जा। वहाँ का सूरपाल राजा तेरी रक्षा करेगा।" हंस सहस्रयोद्धा था। उसने लश्कर का मुकाबला किया। पर लश्कर में 1444 योद्धा थे। हंस उनके बाणों से बिंध गया और मर गया। परमहंस सूरपाल राजा के पास सहीसलामत पहुँच गया। राजा ने सब हकीकत सुन कर उसकी मदद की। बौद्ध लश्कर ने राजा के पास परमहंस की माँग की। राजा ने कह दिया कि मैं लड़ने के लिए तैयार हूँ, पर वह नहीं मिलेगा। आखिर यह तय हुआ कि परमहंस बौद्धों के साथ वाद करे। यदि वह जीते तो छूट जायेगा। खूब वाद-विवाद हुआ। अन्त में परमहंस जीता। सूरपाल ने सम्मान के साथ परमहंस को वहाँ से बिदा किया। रास्ते में बौद्धों ने पकड़ने के अनेक प्रयत्न किये, पर वह अपने गुरु हरिभद्राचार्य के पास पहुँच

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