Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 446
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (413) ने उपयोग दे कर विचार किया कि यह बात सत्य है। महापुरुष के वचन अप्रमाण * नहीं होते। फिर अभ्यास करते हुए आर्यरक्षितजी ने नौ पूर्व तो सम्पूर्ण मुखपाठ कर लिये और दसवाँ पूर्ण पढ़ने लगे। इतने में माता-पिता को अनेक दिन तक आर्यरक्षितजी का कोई समाचार न मिलने से उन्होंने अपने छोटे पुत्र फल्गुरक्षित को आर्यरक्षित के पास भेजा। उसने आ कर कहा कि माता-पिता के पास चलो। आर्यरक्षित ने कहा कि चल कर क्या करूँ? इस पर फल्गुरक्षित ने कहा कि उन्हें धर्मोपदेश दो, क्योंकि उनकी इच्छा दीक्षा लेने की हुई है। तब आर्यरक्षित ने कहा कि तू तो दीक्षा ले ले। इस पर फल्गुरक्षित ने कहा कि मुझे दीक्षा दे कर भी आप वहाँ चलिये। तब फल्गुरक्षित को दीक्षा दे कर उन्होंने गुरु से पूछा कि दसवाँ पूर्व कितना शेष है? गुरु ने कहा कि अभी तो बहुत भाग शेष है। तुम उद्यम करो। तब वे पुनः पढ़ने का उद्यम करने लगे। फिर कई दिन बाद माता-पिता के पास जाने की बड़ी उमंग हुई और उन्होंने गुरु से पूछा कि प्रभो! अभी दसवाँ पूर्व कितना शेष रहा है? गुरु ने कहा कि दसवें पूर्व का बिन्दु मात्र तो तुमने पढ़ लिया है, पर सिंधु नितना पढ़ना शेष रहा है। इसलिए तुम उद्यम करो। तब पुनः पढ़ने का उद्यम करने लगे, पर चित्त बराबर लगता नहीं था। इससे कहा कि अब तो मैं जाऊँगा। तब वज्रस्वामी ने 'पूर्व का इतना भाग अब शेष रहेगा, बाकी विच्छेद हो जायेगा' ऐसा मन में - विचार कर श्री आर्यरक्षितजी को माता-पिता के पास जाने की छुट्टी दी। फिर दोनों भाई दशपुर नगर आये। राजा ने बड़े महोत्सव सहित उन्हें गाँव में प्रवेश कराया। फिर माता-पिताप्रमुख सब कुटुंब को धर्मोपदेश दे कर दीक्षा दी, पर पिता ने दीक्षा नहीं ली। कुटुंब के मोह के कारण वह उनके साथ घूमने लगा। आर्यरक्षितजी ने पूछा कि तुम दीक्षा क्यों नहीं लेते? पिता ने कहा कि मुझे एक तो बड़ी धोती, दूसरा जनेऊ, तीसरा छाता, चौथा जूते और पाँचवाँ कमंडल इन पाँचों के बिना नहीं चलता। इनके बिना चलने में मुझे शर्म आती है। यदि इन्हें रखने की छूट दो, तो मैं दीक्षा ले लूँ। आर्यरक्षितजी ने इन पाँचों की छूट दे कर उन्हें दीक्षा दी। इस वृद्ध का उद्धार अवश्य करना ही चाहिये, यह निश्चय कर आर्यरक्षितजी ने लड़कों को सिखाया कि हम जब चैत्य के दर्शन करने जायें, तब तुम सब साधुओं को वंदन करना, पर इस वृद्ध साधु को वंदन मत करना। यदि यह तुम से कहे कि मुझे वन्दन क्यों नहीं करते? तो तुम कहना कि आप तो छत्र रखते हैं। लड़कों ने वैसा ही किया। तब वृद्ध ने कहा कि साधु छत्र नहीं रखते, तो मुझे भी नहीं रखना।

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