________________ (414) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध यह कह कर उसने छत्र छोड़ दिया। इसी तरह अनुक्रम से जनेऊ, खडाऊँ और कमंडल का भी त्याग कर दिया। फिर कहा कि धोती का तो मुझसे त्याग नहीं होगा। तब आर्यरक्षितजी बोले कि ठीक है, आप धोती रखिये। ___एक दिन एक साधु ने अनशन कर काल किया। तब आर्यरक्षितजी ने अन्य साधुओं को सिखाया कि तुम लोग आपस में विवाद करना, पर साधु के शरीर को परठने के लिए मत उठाना। इस प्रकार सिखा कर वे बोले कि इस साधु के शरीर को जो परठ कर आयेगा, उसे महालाभ होगा। यह सुन कर सब साधु आपस में कहने लगे। एक ने कहा कि मैं जाऊँ, तब दूसरे ने कहा कि मैं ले जाऊँ। सोमदेव नामक वृद्ध साधु ने पूछा कि क्या यह काम करने से बहुत निर्जरा होती है? गुरु ने कहा कि हाँ, बहुत निर्जरा होती है। तब वृद्ध साधु ने कहा कि यह काम मैं ही करूँगा। गुरु ने कहा कि इसमें उपसर्ग बहुत आते हैं, इसलिए जिसमें उपसर्ग सहन करने की शक्ति हो, वह यह काम करे। नहीं तो अरिष्ट हो जाता है। इस पर वृद्ध साधु ने कहा कि मैं सब उपसर्ग सहन करूँगा। यह कह कर वह अनशनी साधु के शरीर को उठा कर चला। ___ आचार्य ने श्रावकों के लड़कों को सिखाया कि तुम इस वृद्ध साधु की धोती खींच लेना। इससे लड़कों ने हो-हल्ला मचा कर उसके पीछे पड़ कर धोती खींच ली। वृद्ध ने जान लिया कि यह तो उपसर्ग है। फिर आचार्य साधु-परिवार को साथ ले कर वृद्ध के पीछे गये। वृद्ध लज्जित हुआ। गुरु ने कहा कि बड़ा भारी उपसर्ग हुआ है, अब दूसरी धोती लाओ। साधुओं ने कहा कि धोती तो नहीं है। तब वृद्ध ने कहा कि लाज तो गयी। अब क्या है? इसलिए चोलपट्टा ही दे दो। इस तरह उस वृद्ध साधु को चोलपट्टा पहनाया। . अब वे वृद्ध मुनि गोचरी लाने नहीं जाते थे। इससे गुरु ने साधुओं से कहा कि मैं पास के गाँव जाता हूँ। तुम लोग गोचरी ला कर स्वयं उपयोग कर लेना। वृद्ध साधु को मत देना। यह कह कर गुरु दूसरे गाँव चले गये। बाद में साधुओं ने अपना अपना आहार ला कर खा लिया, पर वृद्ध को 'लो' कर के नहीं कहा। दूसरे दिन गुरु ने आ कर साधुओं से कहा कि वृद्ध साधु को आहार क्यों नहीं दिया? तब साधुओं ने कहा कि वृद्ध स्वयं गोचरी क्यों नहीं जाते? फिर गुरु स्वयं गोचरी जाने लगे। तब 'यह तो गुरु का अविनय होगा;' यह सोच कर वृद्ध स्वयं ही गोचरी गये। एक सेठ के घर वे पिछले दरवाजे से प्रवेश करने लगे, तब घर के लोग बोले कि अगले दरवाजे से आइये। इस पर वृद्ध साधु