Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 444
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (411) गये। यह देख कर लोग विस्मित हुए। फिर आचार्य तथा नगर के अन्य सब लोग -मिल कर ब्रह्मद्वीप गये। वहाँ तापसों को धर्मोपदेश दे कर प्रतिबोध दिया। तब पाँच सौ तापसों ने दीक्षा ली और यह बात सब लोगों में प्रसिद्ध हो गयी कि वह तापस चूर्ण के प्रयोग से नदी पर चलता था, पर उसमें तपस्या का कुछ भी प्रभाव नहीं था। जैन धर्म की महिमा-वृद्धि हुई। फिर संघसहित गुरु अपने स्थान पर आये। इन तापस साधुओं से ब्रह्मद्वीपिका शाखा सर्वत्र प्रसिद्ध हुई। आर्यरक्षितसूरिजी का संक्षिप्त वृत्तान्त इस स्थविरावली में यद्यपि श्री आर्यरक्षितप्रमुख आचार्यों के नाम लिखे नहीं हैं, तथापि ये भी स्थविर जैसे ही हुए हैं। इसलिए इनका संबंध कहते हैं दशपुर नगर में सोमदेव पुरोहित अपनी भार्या रुद्रा के साथ रहता था। उनके पुत्र आर्यरक्षितजी परदेश गये। वहाँ से चौदह विद्याएँ पढ़ कर आये। राजा ने उन्हें हाथी पर बिठा कर महोत्सव सहित नगर में प्रवेश कराया। सब सज्जन मित्र, कुटुंबादिक आ कर उनसे मिले, पर उनकी माता नहीं मिली। माता के पाँव छूने गये, तो भी माता नहीं बोली। तब आर्यरक्षितजी ने पूछा कि माताजी! आप आमण-दूमणी (बेचैन) दीखती हैं, पर कुछ भी आनन्द प्रकट नहीं करतीं, इसका क्या कारण है? माता ने कहा कि हे पुत्र! तू जो विद्याएँ सीख आया है, वे सब नरक में ले जाने वाली हैं, क्योंकि तू बहुत होमादिक लौकिक कृत्य करने के शास्त्र सीख आया है। मैं जैनी हूँ। दुर्गति प्रदान करने वाले इन शास्त्रों को मैं कैसे अच्छा मानूं। मैं तो आत्मा का कल्याण करने वाले शास्त्र पढ़ने से खुश होने वाली हूँ। पुत्र ने कहा कि माताजी! आत्मा को तारने वाले शास्त्र कौन से हैं? मुझे बताइये, तो मैं उनका भी अभ्यास करूँ। माता ने कहा कि तू दृष्टिवाद पढ़। आर्यरक्षितजी ने पूछा कि दृष्टिवाद पढ़ने कहाँ जाऊँ? तब माता ने कहा कि तोसलीपुत्र आचार्य के पास जा कर ये शास्त्र पढ़। ____प्रातःकाल उठ कर आर्यरक्षितजी ने पढ़ने के लिए प्रयाण किया। कुछ दूर जाने पर उनके पिता का मित्र एक ब्राह्मण गन्ने हाथ में ले कर आते हुए सामने मिला। उसने पूछा कि तुम कौन हो? उन्होंने कहा कि मैं आर्यरक्षित हूँ। फिर उसने कहा कि तुम्हें परदेश से आया जान कर मैं तुमसे मिलने आया हूँ और ये गन्ने भी तुम्हारे लिए लाया हूँ। आर्यरक्षित ने गन्ने गिन कर देखे। वे साढ़े नौ निकले। इससे उन्होंने जाना कि मैं दृष्टिवाद के साढ़े नौ भाग सीखूगा। फिर उस ब्राह्मण से कहा . कि तुम मेरी माता के पास जाओ। उनसे कहना कि आपके पुत्र आर्यरक्षित मुझे मिले थे। इतना कह कर आर्यरक्षित आगे बढ़ गये।

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