Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 434
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (401) हुए कहा कि तुम यहाँ बैठो, मैं आता हूँ। पर उस शिष्य ने मोह से कहा कि .मैं तो आपके पीछे आऊँगा। तो भी गुरु ने उसे समझा कर रखा। तब शिष्य ने सोचा कि गुरु महाराज को अप्रीति न हो, वैसा करना ही ठीक होगा। यह सोच कर पुनः पर्वत के मूल में आ कर उसने तपी हुई शिला पर अनशन कर लिया। बालक होने के कारण सुकुमारता से तत्काल शुभध्यान में मर कर वह देवलोक गया। देवों ने मिलकर उसकी महिमा की। अन्य साधुओं ने भी विशेष दृढ़ हो कर अनशन किया। पर मिथ्यात्वी देव वहाँ आ कर उन्हें अनशन में मोदक के लिए निमंत्रण करने लगे। उन्होंने कहा कि हे महाराज! यह आहार शुद्ध व निर्दोष है। इसे आप लीजिये। तब साधुओं ने विघ्न का स्थान जान कर नजदीक के दूसरे पर्वत पर जा कर अनशन किया। शुभ ध्यान में काल कर के वज्रस्वामी आठ वर्ष गृहस्थावास में, चवालीस वर्ष व्रत में और छत्तीस वर्ष युगप्रधान पद में एवं अठासी वर्ष की सर्व आयु पूर्ण कर वीर निर्वाण के पाँच सौ चार वर्ष बाद देवलोक गये। इन्द्र महाराज ने रथ पर बैठ कर पर्वत की प्रदक्षिणा कर के सब साधुओं को वन्दन किया। वहाँ इन्द्र महाराज के रथ की रेखा निर्माण हुई। इससे उस पर्वत का नाम रथावर्त पड़ा। वहाँ के वृक्ष भी साधुओं को नमने * से आज भी झुके हुए दिखायी देते हैं। - श्री वज्रस्वामी के देवलोक गमन के बाद दसवाँ पूर्व तथा अर्द्धनाराच संहनन का विच्छेद हुआ। आर्य सुहस्ति तथा आर्य वज्रस्वामी के मध्य में 1. गुणसुन्दरसूरि, 2. कालिकाचार्य, 3. स्कंदिलाचार्य, 4 रेवतीमित्र, 5. धर्मसूरि, 6. भद्रगुप्ताचार्य और 7. श्रीगुप्ताचार्य ये सात युगप्रधान हुए, ऐसा कई पट्टावलियों में लिखा है। ___ वज्रसेनाचार्य सोपारा नगर में जिनदत्त श्रावक तथा उसकी ईश्वरी भार्या के घर गोचरी गये। इन दोनों को प्रथम से श्रीवज्रस्वामी का प्रतिबोध प्राप्त था। अकाल के कारण अनाज न मिलने से सेठ और सेठानी ने अपने चार पुत्रों सहित लाखमूल्य अनाज की हंडी चूल्हे पर चढ़ा कर विचार

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