Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 437
________________ (404) .. श्री कल्पसूत्र-बालावबोध मालागरी, 2. संकासीया, 3. गवेधुया और 4. वज्रनागरी ये चार शाखाएँ हुईं तथा 1. वत्थलिज्ज, 2. पीइधम्मिय, 3. हालिज्ज, 4. पूसमित्तिज्ज, 5. मालिज्ज, 6. अज्जचेडय तथा 7. कण्णसह ये सात कुल हुए। ___भारद्वायस गोत्रीय भद्रयश से उडुवाडिय गण निकला। उसकी 1. चंपिज्जिया, 2. भद्दिज्जिया, 3. काकंदिया और 4. मेहलिज्जिया ये चार शाखाएँ हुईं तथा 1. भद्दजसिय, 2. भद्दगुत्तिय और 3. जसभद्द ये तीन कुल हुए। कुंडिलस गोत्रीय स्थविर कामर्द्धि से वेसवाडिय गण निकला। उसकी 1. सावत्थिया, 2. रज्जपालिया, 3. अंतरिज्जिया और 4. खेमलिज्जिया.. ये चार शाखाएँ हुईं तथा 1. गणिय, 2. मेहिय, 3. कामड्डिय और 4. इन्द्रपुरग ये चार कुल हुए। वासिष्ठ गोत्रीय कार्कदिक ऋषिगप्त से माणव गण निकला। उसकी चार शाखाएँ हुईं- 1. कासविज्जिया, 2. गोयमिज्जिया, 3. वासिट्ठिया और 4. सोरडिया तथा तीन कुल हुए- 1. इसि गुत्तियत्थ, 2. इसिदत्तिय और 3. अभिजयन्त। व्याघ्रापत्य गोत्रीय कोटिक काकंदिक सुस्थित-सुप्रतिबद्ध से कोटिक गण निकला। उसकी चार शाखाएँ हुईं- 1. उच्चनागरी; 2. विज्जाहरी, 3. वइरी और 4. मज्झिमिल्ला तथा कुल भी चार हुए- 1. बंभलिज्ज, 2. वच्छलिज्ज, 3. वाणिज्ज और 4. पण्हवाहणय। ___ सुस्थित-सुप्रतिबद्ध के पाँच शिष्य हुए- 1. आर्य इन्द्रदिन्न, 2. प्रियग्रंथ, 3. काश्यप गोत्रीय विद्याधरगोपाल, 4. आर्य ऋषिदत्त और 5. स्थविर अरिहदत्त। आर्य प्रियग्रंथ से मध्यमा शाखा और विद्याधरगोपाल से विद्याधरी शाखा निकली। ____ आर्य इन्द्रदिन्न के शिष्य गौतम गोत्रीय आर्य दिन्न हुए। आर्य दिन्न के दो शिष्य हुए- 1. माढरस गोत्रीय आर्य शान्तिसेनिक और 2. कौशिक गोत्रीय आर्य सिंहगिरि। आर्य शान्तिसेनिक से उच्चनागरी शाखा निकली। उनके चार शिष्य

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