________________ (408) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध झूठी स्थापना नहीं की है। राशियाँ तो तीन ही हैं। तब गुरु ने कहा कि यदि मेरे साथ भी वाद करने की इच्छा हो, तो चलो, राजसभा में जा कर अपन वाद करें। यह कह कर अपने शिष्य को साथ ले कर गुरु राजसभा में पहुँचे और कहने लगे कि हे राजन्! मेरे इस शिष्य ने वादी को जीतने के लिए जो तीन राशियों की स्थापना की है, वह असत्य है। यह मेरा कहा मानता नहीं है। यह मेरे साथ वाद करेगा। हम दोनों के मध्य आप साक्षीदार रहें, तो हम वाद करें। तब राजा ने कहा कि सुख से वाद करो। फिर गुरु-शिष्य वाद करने लगे। वाद छह महीने तक चला। शिष्य ने 1444 प्रश्न पूछे। गुरु ने सब प्रश्नों के अकाट्य उत्तर दिये, तो भी वह नहीं समझा। राजा को बहुत समय खोना पड़ा। इससे राजा ने 'इनके झगड़े में मैं कितने दिन तक अपना समय गँवाऊँ ऐसा विचार कर गुरु से कहा कि हे स्वामिन्! आपका कहना सब सत्य है, पर मेरे राज्य से संबंधित कामकाज में इससे बिगाड़ होता है, इसलिए अब आप मुझे साक्षी से मुक्त कीजिये। तब गुरु ने कहा कि कल सब झगड़ा मिटा दूंगा। - दूसरे दिन गुरु ने शिष्य से कहा कि 'कुत्रिकापण' की दूकान में तीन लोक की सब वस्तुएँ मिलती हैं। वहाँ नोजीव मिल जाये, तो तु, सच्चा और न मिले तो मैं सच्चा। शिष्य ने भी यह बात मान्य की। फिर राजसभादि परिवार के साथ वे दोनों कुत्रिकापण में गये। शिष्य ने वहाँ जीव, अजीव और नोजीव माँगे। तब देव ने जीव के बदले चूहा और अजीव के बदले पत्थर ला कर दिया। फिर नोजीव माँगा, तब दो-तीन बार जीव और अजीव ये दो ही वस्तुएँ ला कर दीं, पर नोजीव नहीं दिया। इतने में आकाशवाणी हुई कि जगत में जीव और अजीव ये दो ही राशियाँ हैं, पर दूसरी कोई राशि नहीं है। तब सब लोग बोले कि गुरु सच्चे हैं। फिर गुरु ने शिष्य से कहा कि क्यों, अब समझे या नहीं? यदि समझे हो, तो मिच्छा मि दुक्कडं दो। तब शिष्य ने कहा कि ऐसे मैं मानने वाला नहीं हूँ। तब गुरु ने भस्म की कुंडी (पात्र) उसके सिर पर डाल कर उसे गच्छ से बाहर किया। फिर रोहगुप्त ने वैशेषिक मत की स्थापना की। उसने नौ द्रव्य, सतरह गुण, पाँच कर्म, तीन सामान्य, एक विशेष, और एक समवाय इन छह पदार्थों की प्ररूपणा की। इनके प्ररूपण से चौदह सौ चवालीस भेद हुए। इसका नाम गोत्र के मिलाप से स्थापन हुआ और इसी से त्रैराशिक शाखा हुई। मध्यमा शाखा की उत्पत्ति स्थविर प्रियग्रंथ से मध्यमाशाखा निकली। इसका अधिकार इस प्रकार है