Book Title: Kalpsutra Balavbodh
Author(s): Yatindravijay, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 431
________________ (398) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (कहू) की भिक्षा देने लगा। उस समय वज्रऋषि ने जाना कि कुम्हड़े की ऋतु तो अब नहीं है, तो इस समय यह कुम्हड़ा कहाँ से लाया? यह तो कोई देवमाया लगती है, इसलिए देवपिंड नहीं लेना चाहिये। ऐसा जान कर उन्होंने भिक्षा नहीं ली। तब देव ने सन्तुष्ट हो कर उन्हें वैक्रियलब्धि अर्पण की। पुनः एक बार गर्मी के दिनों में घेवर की परीक्षा में देव उन्हें डिगाने आया। तब भी वज्रमुनि चलायमान नहीं हुए। उस समय देव ने उन्हें आकाशगामिनी विद्या दी। एक दिन गुरु स्थंडिलभूमि गये थे और अन्य साधु गोचरी गये हुए थे। उस समय वज्रमुनि बालक्रीड़ा से साधुओं के उपधि-प्रमुख उपकरण चारों ओर रख कर स्वयं बीच में बैठ कर जैसे गुरु वाचना देते हैं, वैसे ही भिन्नभिन्न ग्यारह अंगों की वाचना देने लगे। गुरु ने दरवाजे में चुपचाप खड़े रह कर सब वाचना सुनी। फिर बालक को किसी प्रकार की शंका न हो, इस तरह उच्च स्वर में 'निसीहि' कह कर गुरु उपाश्रय में आये। वज्रऋषि ने भी अपना सब कार्य समेट लिया। फिर गुरु ने उस बालक के गुण प्रकट करने के लिए साधुमंडल से कहा कि तुम लोग यहीं रहना, मैं एक गाँव में जा कर आता हूँ। तब साधुओं ने कहा कि हमें वाचना कौन देगा? गुरु ने कहा कि वज्रऋषि वाचना देंगे। इतना कह कर गुरु दूसरे गाँव चले गये। वे साधु गुरु का वचन प्रमाण करने वाले विनयवान थे, इसलिए वज्रमुनि का विनय कर के उनके पास वाचना लेने लगे। उन्हें वज्रमनि ने ऐसी वाचना दी कि गुरु अनेक वाचनाओं से जितना पढ़ाते थे, उतना एक ही वाचना में पढ़ा दिया। साधुओं ने सोचा कि गुरु गाँव गये हैं, उन्हें लौटने में चार दिन अधिक लगें तो ठीक होगा। इतने में हमारा अमुक श्रुतस्कंध पूरा हो जायेगा। फिर कई दिन बाद गुरु लौटे। उन्होंने पूछा कि हे साधुओ! क्या तुम्हारी वाचना सुखपूर्वक हुई। साधुओं ने कहा कि हाँ महाराज! अब हमारे वाचनाचार्य वज्रमुनि होवें। फिर गुरु ने वज्रमुनि को वाचनाचार्य बनाया। गुरु की आज्ञा से वज्रमुनि उज्जयिनी नगरी में भद्रगुप्त आचार्य के पास दस पूर्व पढ़े और उन्होंने आचार्यपद प्राप्त किया।

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