________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (385) मुखपाठ सुना देना। सुबह के समय वररुचि भी एक सौ आठ काव्य बना कर सभा में आ कर बोलने लगा। उस समय प्रधान ने कहा कि महाराज! पूर्व के अपने बड़े नन्द राजा के पास कहे हुए ये काव्य हैं। इन्हें नित्य आ कर यह भट्ट कहता है। ये काव्य तो मेरी सब पुत्रियों को भी आते हैं। तब राजा ने पुत्रियों को बुलवा कर उनसे सब काव्य कहलवाये। उन सातों ने अनुक्रम से एक के बाद एक मुखपाठ कह सुनाये। तब राजा ने निर्भर्त्सना कर के भट्ट को निकाल दिया। फिर वररुचि ने गंगा नदी में एक यंत्र स्थापित किया। उसकी कल पर वह गुप्तरूप से पाँच सौ सुवर्णमुद्राएँ भरी हुई गेंद रख आता। फिर सुबह के समय लोगों को जमा कर वहाँ जा कर गंगा की स्तुति के नये काव्य बोल कर कल दबाता तब पाँच सौ सुवर्णमुद्राओं वाली गेंद हाथ में आ जाती। यह कौतुक देख कर लोग कहने लगे कि देखो! राजा ने देना बन्द कर दिया, तो भी इस पंडित को गंगादेवी देती है। - यह बात राजा ने सुनी। तब उसने प्रधान से कहा कि चलो, हम भी देखने चलें। प्रधान ने कहा कि कल चलेंगे। फिर प्रधान ने उस जगह पर अपने गुप्त लोग बिठाये। शाम के समय जब भट्ट वहाँ सुवर्णमुद्राओं की पोटली यंत्र में रख आया, तब छिप कर बैठे हुए उन लोगों ने वह पोटली निकाल कर प्रधान को सौंप दी। सुबह के समय राजाप्रमुख सब लोग देखने गये। तब वररुचि ने भी गंगादेवी की स्तुति कर के जोर से कल दबायी, पर हाथ में कुछ नहीं आया। फिर राजा ने पूछा कि ऐसा कैसे हो गया? उस समय प्रधान ने सब प्रपंच प्रकट कर पोटली बतायी। फिर वह भट्ट को सौंप दी। इससे लोगों में भट्ट की बहुत निन्दा हुई। भट्ट मंत्री से द्वेष करने लगा। इसी अवसर पर प्रधान के पुत्र श्रीयक का विवाह आयोजित हुआ। उस समय प्रधान के घर में शस्त्रप्रमुख अनेक तरह की तैयारियाँ देख कर भट्ट ने एक दोहा बना कर अपने पास पढ़ने वाले लड़कों को सिखाया कि नंदराय जाणे नहीं, जे सिकडाल करेसि।