________________ (388) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध वांछा अधिक होती है। तथा रहने के लिए चौरासी आसन चित्रित चित्रशाला जैसा स्थान हो और खाने के लिए षड्रस भोजन मिलता हो, ये सब भोग के अंग मिलें, पर यदि स्त्री रागवाली न मिले, तो सब निष्फल होता है। पर यहाँ स्थलिभद्रजी को तो कोशा वेश्या जैसी सब में अग्रसर रागवाली स्त्री मिली थी। उसने बड़ी उम्मीद से उन्हें चित्रशाला में उतारा, अनेक प्रकार के भोजन कराये, अनेक तरह के हावभाव किये, वह भोग-विलास के वचन बोली, तो भी इस महापुरुष का एक रोम भी चंचल नहीं हुआ। अन्त में वेश्या ने कहा कि मैं इतने विलास करती हूँ, इनका कुछ प्रत्युत्तर तो दीजिये। उत्तर में मुनि ने कहा कि हे भोली! धर्म के बिना सब . अवतार निष्फल है। इत्यादिक उपदेश सुन कर कोशा श्राविका बन गयी। राजा के हुक्मदार पुरुष को छोड़ कर अन्य किसी भी पुरुष को घर में प्रवेश करने नहीं देना, ऐसा अभिग्रह उसने लिया। ___ कोशा को श्राविका बना कर चातुर्मास पूर्ण होने पर श्री स्थूलिभद्र मुनि गुरु के पास आये और अन्य तीनों साधु भी आये। गुरु ने किंचित् उठ कर उन तीनों से कहा कि हे दुष्करकारक! तुम भले आये और स्थूलिभद्रजी को तो आते देखते ही गुरु उठ कर खड़े हो कर बोले कि भले आये अहो दुष्करकारक दुष्करकारक! यह सुन कर सिंहगुफावासी साधु ने अमर्ष ला कर विचार किया कि ये गुरु भी धनवान की गरज करनेवाले दीखते हैं। क्योंकि जो खुब माल खा कर मस्त हो कर आया है, उसे तो अहो 'दुष्कर दुष्करकारक' ऐसा कहा और मैंने इतना कठिन तप किया, तो मुझे 'दुष्कर कारक' इतना ही कहा। ऐसा जान कर अगले चातुर्मास में सिंह गुफावासी साधु ने गुरु से कहा कि मैं वेश्या के घर चातुर्मास करने जाऊँगा। तब गुरु ने कहा कि वत्स! कामदेव की राजधानी जैसे घर में जा कर चातुर्मास करना बड़ा कठिन काम है। तू भ्रष्ट हो जायेगा, इसलिए तुझे वहाँ नहीं जाना है। तो भी वह नहीं माना और कोशा के घर चातुर्मास में रहने के लिए गया। वहाँ वेश्या ने उसे रहने के लिए एक सामान्य स्थान दिया और सामान्य वेश धारण कर वह