________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (381) सीखा? तब वह कहता कि एक दिन मैने नगर के बाहर कुंडली बनायी थी। उस कुंडली को वैसे ही रख कर मैं वहाँ से चला गया। फिर जब याद आया, तब उसे मिटाने के लिए मैं पुनः वहाँ गया। वहाँ जा कर मैंने देखा तो पता चला कि कुंडली में सिंह लग्न का स्वामी सिंह अपनी पूँछ बढ़ा कर उस पर खड़ा है। फिर मैने लग्न की भक्ति के कारण अपनी छाती मजबूत कर के सिंह के नीचे घुस कर लग्न मिटा दिया। मेरी भक्ति देख कर सिंह के अधिपति सूर्य ने मेरे पास आ कर मुझसे सन्तुष्ट हो कर कहा कि तुम जो माँगो सो मैं तुम्हें दे दूंगा। तब मैंने कहा कि नक्षत्रादिक का चार वास्तव में जैसा है, वैसा मुझे बता दीजिये। फिर सूर्य मुझे अपने ज्योतिष के मंडल-चार में मुझे ले गया। वहाँ मुझे सब चार बताये गये और उदयास्त चक्र भी बताया गया। उस ज्योतिष के बल से मैं तीनों कालों की बातें जानता हूँ। . ऐसी कल्पित बातें कह कर वह लोगों में सम्मान पाने लगा। वह राजाप्रमुख को निमित्त बता कर खुश करता और उन्हें चमत्कृत करता। इस तरह उसने अनेक लोगों को मिथ्यात्वी बनाया। उस अवसर पर श्री भद्रबाहुस्वामी भी उस नगर में आये। श्रावकों ने महामहोत्सवपूर्वक नगरप्रवेश कराया। यह सब वराहमिहर से सहन नहीं हुआ। उसने सोचा कि इनका मान खंडित करूँ, तो अच्छा होगा। यह सोच कर एक दिन राजसभा में जा कर उसने राजा से कहा कि आज से पाँचवें दिन पूर्व दिशा से बरसात आयेगी। वह तीसरे प्रहर में बरसेगी। मैं यह वर्तुल बनाता हूँ। इसके बीच में बावन पल का एक मत्स्य गिरेगा। ऐसा निमित्त उसने कहा। ____यह बात श्रावकों ने जा कर भद्रबाहुस्वामी से कही और पूछा कि हे स्वामिन! वराहमिहर द्वारा कही गयी यह बात सत्य है या असत्य? तब भद्रबाहु ने कहा कि कुछ सत्य है और कुछ असत्य है। क्योंकि पूर्व दिशा से नहीं पर ईशानकोण से वर्षा आयेगी। वह छह घड़ी दिन शेष रहेगा, तब बरसेगी। तीसरा प्रहर कहा सो झूठ है। इसी प्रकार बावन पल का नहीं, पर