________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (367) फिर तीन पालकियाँ बनवायीं। एक पालकी में भगवान का शरीर, दूसरी में गणधरों के शरीर और तीसरी में मुनियों के शरीर रख कर उन्हें चिता के पास ले गये। शक्रेन्द्र ने भगवान का शरीर पालकी से निकाल कर चिता पर रखा तथा अन्य देवों ने अन्य गणधरादिकों के शरीर पालकी से उतार कर चिता पर रखे। फिर शक्रेन्द्र के आदेश से अग्निकुमारदेव मन में उदास होते हुए चिता में अग्नि जलाने लगे तथा वायुकुमारदेव भी मन में उदास होते हुए वायु बहाने लगे। अन्य देव भी चिता में घृतप्रमुख सींचने लगे। ___ फिर जब हड्डियाँ मात्र शेष रहीं और शरीर के अन्य सब भाग जल कर भस्म हो गये, तब मेघकुमारदेवों ने जल बरसा कर सब चिताएँ बुझा दी। फिर शक्रेन्द्र ने भगवान की ऊपर की दाहिनी ओर की दाढ़ें लीं और ईशानेन्द्र ने ऊपर की बायीं ओर की दाढ़ें लीं। इसी प्रकार चमरेन्द्र ने नीचे की दाहिनी ओर की दाढ़ें लीं और बलेन्द्र ने नीचे की बायीं ओर की दाढ़ें लीं। फिर अन्य देवों में से कइयों ने जिनभक्ति के वश हो कर, कइयों ने अपना आचार मान कर और कइयों ने धर्म मान कर परमेश्वर के अंगोपांगों की सब हड्डियाँ ले लीं। फिर भगवान का जिस स्थान पर अग्निसंस्कार किया गया था, उस स्थान पर शक्रेन्द्र ने रत्नों के तीन पीठ बनवाये। .यह सब कर के सब देव नन्दीश्वरद्वीप में गये। वहाँ अट्ठाई महोत्सव कर के फिर अपने अपने स्थान पर गये। जो दाढ़ेंप्रमुख वे ले गये थे, उन्हें अपनी अपनी सभा में उन्होंने वज्रमय करंडक में रखा और वे उनकी गंधमालादिक से पूजा करने लगे तथा धूप देने लगे। इसी प्रकार का निर्वाणमहोत्सव सब तीर्थंकरों का जानना चाहिये। श्री ऋषभदेवस्वामी के मोक्षगमन के बाद पचास लाख करोड़ सागरोपम बीत जाने पर श्री अजितनाथजी मोक्ष गये। श्री ऋषभदेव अरिहन्त मोक्ष जाने के बाद तीन वर्ष साढ़े आठ महीने तीसरा आरा शेष रहा था, वह बीत गया। फिर तीन वर्ष और साढ़े आठ महीने तथा ऊपर बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ि सागरोपम बीतने पर श्री महावीरस्वामी मोक्ष गये। याने कि पा