________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (369) यहाँ कोई शंका करे कि वाचना में अन्तर होता है, तो क्या केवली के कथन में अन्तर होता है? इसका उत्तर यह है कि केवली के कथन में अन्तर नहीं है, पर केवली के वचन सुन कर गणधर उन वचनों से सूत्ररचना करते हैं, उनकी रचना में (शब्दों में) अन्तर है, पर अर्थ में अन्तर नहीं है। मात्र शब्द अनेक प्रकार के हैं। उनमें रचना करते समय एक गणधर एक जाति के शब्द से गूंथता है, तो दूसरा गणधर दूसरी जाति के शब्दों से गूंथता है। इस कारण से शब्द रचना में फेरफार होता है। ____दूसरा मँझला भाई-शिष्य अग्निभूति अनगार है। उनका गौतम गोत्र है और वे पाँच सौ साधुओं को वाचना देते हैं। यह दूसरा गच्छ। तीसरा छोटा भाई वायुभूति नामक शिष्य है। वे भी गौतम गोत्रीय हैं और पाँच सौ साधुओं को वाचना देते हैं। यह तीसरा गच्छ। ये तीनों गृहस्थावस्था में सगे भाई थे। चौथे स्थविर आर्यव्यक्त नामक भारद्वायण गोत्रीय हैं। वे पाँच सौ साधुओं को वाचना देते हैं। यह चौथा गच्छ। पाँचवें स्थविर आर्य सुधर्म नामक अग्निवैश्यायन गोत्रीय हैं। वे भी पाँच सौ साधुओं को वाचना देते हैं। यह पाँचवाँ गच्छ। छठे स्थविर मंडितपुत्र वासिष्ठ गोत्रीय हैं। वे साढ़े तीन सौ साधुओं को वाचना देते हैं। यह छठा गच्छ। सातवें स्थविर मौर्यपुत्र काश्यप गोत्रीय हैं। वे साढ़े तीन सौ साधुओं को वाचना देते हैं। यह सातवाँ गच्छ। आठवें स्थविर अकंपित गौतम गोत्रीय हैं और नौवें स्थविर अचलभ्राता हारितायान गोत्रीय हैं। ये दोनों स्थविर तीन सौ तीन सौ शिष्यों को वाचना देते हैं। इन दोनों गणधरों की वाचना एक है। इसलिए इनका एक ही गच्छ है। ये दोनों गणधर भाई हैं, परन्तु इनके माता एक और पिता दो हैं। इसलिए इनके गोत्र अलग-अलग कहे हैं। पूर्व में ब्राह्मणों में एक पति मर जाने के बाद स्त्री के दूसरा पति करने की प्रथा थी। इस कारण से दो पिता कहे। यह आठवाँ गच्छ। दसवें स्थविर मेतार्य और ग्यारहवें स्थविर प्रभास ये दोनों कौडिन्य गोत्रीय भाई हैं। ये तीन सौ तीन सौ साधुओं को वाचना देते हैं। इन दोनों