________________ (374) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध लगी। इतने में राजा वहाँ आ गया। तब भयभ्रान्त हो कर रानी ने ललितांगकुमार को महल की मोरी में छोड़ दिया और सोचा कि इसे बाद में बाहर निकाल लूँगी। बाद में रानी राजा के साथ रमण करने लगी और उसे भूल गयी। ललितांग उस मोरी में भूखा-प्यासा चार महीने तक पड़ा रहा। कोई उसमें जूठन फेंकता, तो वह खा लेता और कोई जूठा पानी डालता तो वह पी लेता। ललितांग के माता-पिता ने उसकी बहुत खोज की, पर वह नहीं मिला। इससे वे शोक करने लगे। इतने में बरसात हुई। इससे मोरी में पानी भर गया। वह पानी निकालने के लिए मोरी खोल दी गयी। तब मोरी के पानी के साथ बहते बहते ललितांग भी नगर की बड़ी मोरी में जा गिरा। लोगों ने उसे देखा, तब उसके माता-पिता से जा कर कहा। माता-पिता उसे मोरी से निकाल कर घर ले आये। वहाँ वह मूर्छित हो कर गिर पड़ा। उसका शरीर पीला पड़ गया था और उसकी हड्डियाँ दिखाई देने लगी थीं। माता-पिता ने अनेक प्रकार के तैलादिक मसला कर उसे सावचेत किया। फिर औषधोपचार करने पर बहुत दिन बाद उसका शरीर ठीक हुआ। तब पुनः वस्त्रप्रमुख पहन कर वह बाजार में घूमने निकला। रानी ने उसे पहचान कर पुनः बुलाया। तब उसने कहा कि अब मैं तुम्हारे फन्दे में नहीं फँसूंगा। इस तरह आठों स्त्रियाँ सांसारिक सुख का त्याग न करने से संबंधित भिन्न-भिन्न कथाएँ जंबूकुमार से कहेंगी और जंबूकुमार भी पुनः संसार की असारता बताने वाली भिन्न-भिन्न आठ कथाएँ उन आठों स्त्रियों से कहेगा। तब उन स्त्रियों को प्रतिबोध प्राप्त होगा। इतने में प्रभव नामक एक चोर पाँच सौ चोरों को साथ ले कर जंबूकुमार के भवन में आयेगा। वह सबको विद्या के बल से अवस्वापिनी निद्रा देगा। इससे सब को नींद आ जायेगी, पर जंबूकुमार को नींद नहीं आयेगी। फिर ताले खोलने की विद्या से भंडार खोल कर निन्यानबे करोड़ सुवर्णमुद्राओं की गठरियाँ बाँध कर उन्हें ले कर वह चलने लगेगा। इतने में जंबूकुमार को यद्यपि द्रव्य पर मूर्छा तो बिल्कुल नहीं है, तो