________________ (376) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध रखा और बूंद के स्वाद में मग्न हो गया। वह यह भूल गया कि स्वयं पर पूर्वोक्त अनेक प्रकार के दुःख छाये हुए हैं। इतने में एक विद्याधर ने उसके पास आ कर कहा कि हे पुरुष! तेरा दुःख देख कर मुझे दया आ रही है, इसलिए आ और मेरे विमान में बैठ जा। मैं तुझे दुःख से निकालने आया हूँ। तब उस पुरुष ने कहा कि हे विद्याधर! शहद की यह एक बूँद मेरे मुख में आ जाने दो। फिर मैं आपके साथ विमान में बैठ कर चलूँगा। फिर एक बूंद उसके मुँह में गिरी। पुनः उसने कहा कि यह दूसरी बूंद आ जाये तो चलूँ। इस तरह एक एक बूंद के स्वाद में ललचाते हुए वह उस विकट स्थान को छोड़ नहीं पा रहा था। तब विद्याधर ने जान लिया कि यह तो ऐसा ही मूर्ख है, लोभी है। यह इस दुःख में से निकलेगा नहीं। ऐसा जान कर उसे वहीं उसी स्थिति में छोड़ कर विद्याधर वहाँ से चला गया। ऐसे ही हे प्रभव! यह जीव संसाररूप अटवी में आयुष्यरूप वृक्ष पर लटका हुआ है। वहाँ परिवार के रसरूप मधुबिन्दु को चाटते चाटते वह अपना आयुष्य घटा रहा है और मोह में मस्त हो कर रह रहा है। सद्गुरु उसके पास जा कर उसे चारित्ररूप विमान में बैठने के लिए कहते हैं, तब संसारी जीव स्त्री के भोगरूप मधुबिन्दु में ललचाते हुए संसार में से निकलने की इच्छा नहीं करता। इसलिए यह अवसर चूक गये; तो पुनः संसार में मनुष्य अवतार मिलना महादुर्लभ है। ये वचन सुन कर प्रभव चोर भी प्रतिबोधित होगा। वह कहेगा कि हे जंबूजी! मैं भी आपके साथ दीक्षा लूँगा। फिर जंबूकुमार अपने माता-पिता को प्रतिबोध देगा तथा आठों कन्याएँ भी अपने-अपने माता-पिताओं को प्रतिबोध देंगी और प्रभव भी पाँच सौ चोरों को प्रतिबोध देगा। इस तरह कुल मिला कर पाँच सौ सत्ताईस जनों के साथ सुबह के समय जंबूकुमार दीक्षा लेगा। ___यह सब श्री महावीरस्वामी ने श्रेणिक राजा से कहा था। इसके अनुसार निन्यानबे करोड़ सुवर्णमुद्राएँ धर्मक्षेत्रों में खर्च कर के महा महोत्सव