________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (365) आठवें तीर्थंकर के तीर्थ-विच्छेद के पश्चात् उन श्रावक ब्राह्मणों ने लोभ-लालच में पड़ कर और धर्मभ्रष्ट हो कर भरतरचित वेदों में परिवर्तन किया और उनमें स्वार्थलोलुपता के पाठ जोड़ कर ऋक् 1, यजु 2, साम 3 और अथर्व 4, ये कल्पित वेद बनाये।। - भरत के पाट पर आदित्ययशा, उनके पाट पर महायशा, उनके पाट पर अभिबल, उनके पाट पर बलभद्र, उनके पाट पर बलवीर्य, उनके पाट पर कीर्तिवीर्य, उनके पाट पर जलवीर्य और उनके पाट पर दंडवीर्य, इन आठ राजाओं ने भगवान का मुकुट पहना। ये आठों राजा आरीसाभवन में केवली हो कर मोक्ष गये। श्री ऋषभदेव प्रभु का परिवार और निर्वाण भगवान श्री. ऋषभदेवजी ने एक लाख पूर्व तक विचर कर अनेक जीवों को प्रतिबोध दिया। उनके ऋषभसेनप्रमुख चौरासी गणधर हुए, चौरासी गच्छ हुए तथा उन्हें ऋषभसेनप्रमुख चौरासी हजार साधुओं की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। उन्हें ब्राह्मी और सुन्दरीप्रमुख तीन लाख साध्वियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई, श्रेयांसप्रमुख तीन लाख पाँच हजार श्रावकों की तथा सुभद्राप्रमुख पाँच लाख चौवन हजार श्राविकाओं की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। चार हजार सात सौ पचास चौदह पूर्वधर जो केवली तो नहीं पर केवलीसरीखे थे, ऐसे साधुओं की भगवान को उत्कृष्टी सम्पदा हुई। उन्हें नौ हजार अवधिज्ञानियों की, बीस हजार केवलज्ञानियों की तथा बीस हजार छह सौ वैक्रिय लब्धिवान साधुओं की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। श्री ऋषभदेव अरिहन्त के ढाई द्वीप में संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्ता जीवों के मन के परिणामों को जानने वाले बारह हजार छह सौ पचास विपुलमति मनःपर्यवज्ञान के धारक साधुओं की तथा बारह हजार छह सौ पचास वादी साधुओं की सम्पदा हुई। भगवान के बीस हजार साधु सिद्ध हुए तथा चालीस हजार साध्वियाँ सिद्ध हुईं। श्री ऋषभदेव अरिहन्त कौशलिक के बाईस हजार नौ सौ साधु अनुत्तर विमान में गये याने कि एकावतारी हुए।