________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (325) एक बार सुवर्णजंघ राजा ने वज्रजंघकुमार को राज्य सौंप कर दीक्षा ग्रहण की। वज्रजंघ राजा श्रीमती रानी के साथ एक दिन झरोखे में बैठे थे। उस समय संध्या को खिलते और विलीन होते देख कर उन्होंने सोचा कि संसार की सब वस्तुएँ एक दिन इसी तरह विलीन होने वाली हैं। इसलिए प्रभात के समय पुत्र को राज्य सौंप कर हम दीक्षा ले लेंगे। उस समय पुत्र ने भी राज्य के लोभ से ज़हरीला धुआँ कर के अपने माता-पिता कोश्रीमतीसहित राजा को विषप्रयोग से मार डाला। वहाँ से मर कर सातवें भव में राजा-रानी दोनों उत्तरकुरुक्षेत्र में युगलिक हुए। आठवें भव में दोनों सौधर्म देवलोक में मित्ररूप में देव हुए। ___ वहाँ से च्यव कर वज्रजंघ का जीव नौवें भव में जंबूद्वीप के महाविदेहक्षेत्र के क्षितिप्रतिष्ठित नगर में सुविधि नामक वैद्य का जीवानन्द नामक पुत्र हुआ। उसी दिन उस नगर में अन्य चार जीव भी पुत्ररूप में उत्पन्न हुए। एक प्रसन्नचन्द्र राजा का पुत्र महीधर, दूसरा सुनासीर नामक प्रधान का पुत्र सुबुद्धि, तीसरा धनासेठ का पुत्र गुणाकर और चौथा सागर सेठ का पुत्र पूर्णभद्र। श्रीमती का जीव सौधर्म देवलोक से च्यव कर ईश्वरदत्त के पुत्र केशव के रूप में उत्पन्न हुआ। ये पाँचों जीवानन्द के परम मित्र थे। ये छहों मित्र साथ साथ रहते, खाते-पीते, खेलते और सुखपूर्वक रहते थे। एक दिन छहों जन जीवानन्द के घर बैठे थे। उस समय एक कोढ़ी साधु-मुनिराज गोचरी वहोरने के लिए आये। उन्हें देख कर उन पाँचों मित्रों ने मिल कर वैद्यपुत्र से कहा कि "अरे ! वैद्य तो मतलबी होते हैं। यदि तुम पुण्य के लिए वैद्यकी करते हो, तो इस साधु का कोढ़ रोग मिटा दो। फिर हम मान लेंगे कि तुम धर्मात्मा हो।" यह सुन कर जीवानन्द वैद्य ने कहा कि हे मित्रो! तुम मेरी बात सुनो। इस साधु का रोग मिटाने के लिए लक्षपाक तथा एक प्रति में ऐसा भी लिखा है कि- चित्रपट बना कर कहा कि इसका स्वरूप जो बतायेगा, उसके साथ मैं विवाह करूँगी। फिर अन्य राजाओं ने अनेक प्रकार की बातें बना कर कहीं, पर ललितांग की बात नहीं मिली। परन्तु जब वज्रजंघ ने कहा कि यह मेरी स्वयंप्रभादेवी का रूप है, तब चक्रवर्ती ने श्रीमती का उसके साथ विवाह किया।