________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (323) भी है कि दरिंद्री के कन्याएँ अधिक होती हैं। फिर उसने सोचा कि अब यदि मेरी स्त्री के सातवीं पुत्री हुई, तो मैं देश छोड़ कर चला जाऊँगा। देवयोग से स्वयंप्रभा देवी का जीव भी उसके घर पुत्रीरूप में जन्मा. यह सातवीं पुत्री हुई, इसलिए सेठ और सेठानी दोनों दुःख करने लगे और दुःखपीड़ित नागिल परदेश चला गया। इसके बाद परिवारजनों ने उस पुत्री का कोई नाम नहीं रखा। लोग उसे अनामिका कह कर बुलाने लगे। बड़ी हो जाने पर भी उस अभागिनी के साथ कोई विवाह नहीं करता था। इस कारण काष्ठ के गट्ठर बेच कर तथा लोगों के घर काम कर वह अपना पेट भरती थी। एक दिन किसी अमीर के बालक को मोदक खाते देख कर अनामिका ने माता से मोदक माँगा। तब माता ने कहा कि तेरे पिता मोदक लाने गये हैं। वे आयेंगे तब दे दूंगी। तब तक तू अंतरतिलक नामक पर्वत से काष्ठ का एक गट्ठर ले आ। फिर रोती हुई वह काष्ठ लाने गयी। उस पर्वत पर युगंधर मुनि को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था। इसलिए वहाँ इन्द्र महाराज महोत्सव कर रहे थे। अनामिका भी नमस्कार कर के वहाँ बैठ गयी। धर्मदेशना सुन कर उसने केवली से पूछा कि मुझे ऐसी दुःखद अवस्था क्यों मिली? मुझे पतिप्रमुख का कोई सुख नहीं है, इसका क्या कारण है? तब प्रभु ने कहा कि तूने पूर्वभव में धर्म की आराधना नहीं की। धर्म के बिना सुख नहीं होता। अब यदि सुख की इच्छा हो, तो धर्म कर। धर्म के प्रभाव से देवों का सुख प्राप्त होता है। फिर अनामिका ने श्रावक के व्रत ग्रहण किये। वह उपाश्रय में बैठ कर श्रावकधर्म का पालन करने लगी। लोगों ने उसे 'धर्मिणी' नाम दिया। साधर्मिक श्रावक उसे पारणाप्रमुख में सहायता करने लगे। इस तरह धर्म के प्रभाव से वह सुखी सुबुद्धिदेव ने ललितांग से आगे कहा कि इस समय वह अनशन कर के लेटी हुई है। तुम वहाँ जा कर उसे अपना रूप दिखाओ, जिससे वह नियाणा करे। यह सुन कर ललितांग ने वहाँ जा कर उसे अपना उत्कृष्ट रूप