________________ (360) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध महीने बाद जब उसने समुद्र में से गरदन बाहर निकाली, तब चक्र ने उसकी गरदन काट डाली। ___ भरतपुत्र सूर्ययश बाहुबली की सेना पार कर बाहुबली के पास जा पहुँचा। उसने बाहुबली से कहा कि मुझ पर शस्त्र चलाओ। तब बाहुबली ने हँस कर कहा कि अरे! तू इक्ष्वाकुवंश में बड़ा पराक्रमी है, पर यदि मैं तुझे एक मुक्का मारूँगा, तो तेरा चूर्ण हो जायेगा। इसलिए दूर ही रह। फिर देवों ने उससे कहा कि अरे मूर्ख! बाहुबली के साथ तू क्यों लड़ने आया है? नाहक मारा जायेगा। इसलिए चला जा। तब वह वहाँ से चला गया। इस तरह बारह वर्ष तक युद्ध जारी रहा। करोड़ों लोग मर गये। खून की नदियाँ बहने लगीं, पर कोई हारा नहीं। तब बहुत बड़ा अनर्थ होते देख कर सौधर्मेन्द्र और चमरेन्द्र ने भरत के पास आ कर कहा कि भगवान तो लोगों का पालन-पोषण कर के गये और तुम लोगों का नाश करने के लिए तैयार हुए हो। ऐसा क्यों? तब भरत ने कहा कि जब तक बाहुबली मेरी आज्ञा न माने, तब तक चक्र आयुधशाला में प्रवेश नहीं करता। बताइये अब मैं क्या करूँ? यह सुन कर इन्द्र ने कहा कि तुम दोनों भाई परस्पर एक-दूसरे के साथ युद्ध करो, पर अन्य लोगों का नाश मत होने दो। भरत ने यह बात कबूल की। फिर वे दोनों इन्द्र बाहुबली के पास गये और कहा कि इस तरह युद्ध में लोगों का नाश करना ठीक नहीं हैं। इसलिए तुम दोनों भाई ही आपस में युद्ध करो। बाहुबली ने भी उनकी बात मान्य की। फिर इन्द्रों ने मिल कर एक दृष्टियुद्ध, दूसरा वाक्युद्ध, तीसरा बाहुयुद्ध, चौथा मुष्टियुद्ध और पाँचवाँ दंडयुद्ध ये पाँच युद्ध करने का प्रस्ताव किया और दोनों सेनाओं को श्री आदिनाथजी की शपथ दे कर दूर किया। फिर पानी छिड़का कर फूल बिछा कर भूमि शुद्ध कर के मुकुट, टोप, बख्तर, पहन कर दोनों भाई आमने-सामने लड़ने के लिए खड़े हुए। उनका युद्ध देवता आकाश में साक्षीधर हो कर देख रहे थे। प्रथम भरत और बाहुबली दोनों भाई आँखें निकाल कर एक-दूसरे के सम्मुख आये। पलक झपकाये बिना वे आपस में एक-दूसरे को देखते रहे।