________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (361) महापराक्रमी शूरवीर होने पर भी जैसे सूर्य की ओर देखने से आँखों में पानी आ जाता है, वैसे ही भरतराजा की आँखों में पानी आ गया। यह देख कर देव फल बरसा कर बोले कि बाहुबली जीते, भरत हारे। यह प्रथम युद्ध। फिर भरत ने सिंहनाद किया, जिससे पर्वत कंपायमान हो गये और जब बाहुबली ने सिंहनाद किया, तब ब्रह्मांड फूटने जैसा शब्द हुआ, जिससे भरत ने अपने कान ढंक लिये। यह देख कर देवों ने कहा कि बाहुबली जीते, भरत हारे। यह दूसरा युद्ध। फिर बाहुयुद्ध में प्रथम भरतराजा ने हाथ लम्बा किया। उसे बाहुबली ने कमलनाल की तरह झका दिया और जब बाहुबली ने अपनी बाँह लम्बी की, तब भरतराजा उसे झुकाने लगे, पर वह बिल्कुल नहीं झुकी, यहाँ तक कि भरतराजा उस पर झूले की तरह लटक गये। यह देख कर देवों ने कहा कि बाहुबली जीते, भरत हारे। यह तीसरा युद्ध। फिर वे दोनों मुष्टियुद्ध करने लगे। उसमें सर्वप्रथम दोनों भाई मल्लों की तरह भुजास्फोट करते हुएं एक-दूसरे से मिले। फिर भरत ने बाहुबली पर मुष्टिप्रहार किया। इससे बाहुबली की आँखें कुछ समय के लिए बन्द हो गयीं। फिर बाहुबली ने गेन्द की तरह भरत को उठा कर आकाश में उछाल दिया, पर पुनः अनुकंपा कर के अपने हाथ में झेल लिया। फिर उन पर मुष्टिप्रहार किया। इससे भरतजी जमीन में पैठ गये। यह देख कर देवों ने कहा कि बाहुबली जीते, भरत हारे। यह चौथा युद्ध फिर वे पाँचवाँ दंडयुद्ध करने लगे। उसमें प्रथम भरत महाराज ने लोहदंड ले कर बाहुबली पर प्रहार किया। इससे बाहुबली का मुकुट मिट्टी के घड़े की तरह चूर्ण हो गया और बाहुबली घुटनों तक जमीन में फंस गये। फिर जमीन में से बाहर निकल कर बाहुबली ने लोहदंड से प्रहार किया। इससे भरत का मुकुट चूर्ण हो गया और उनका सम्पूर्ण शरीर धरती में प्रवेश कर गया। यह देख कर देवों ने कहा कि इस युद्ध में भी बाहुबली जीते और भरत हार गये। यह पाँचवाँ युद्ध। इन पाँचों युद्धों में भरतजी हार गये। फिर वे चिन्तातुर हो कर सोचने