________________ (358) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कह सुनायीं। तब भरत ने भी रणभेरी बजवायी। फिर श्री ऋषभदेवजी की पूजा कर के वज्रबख्तर पहन कर हाथी पर सवार हो कर चतुरंगिणी सेना साथ ले कर भरतजी युद्ध के लिए रवाना हुए। उनके पीछे उनके सवा करोड़ पुत्र तथा अनेक पौत्र भी चले। साथ में चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख रथ, छियानबे करोड़ पायदल, सोलह लाख रणतूरवादक, दस करोड़ ध्वजाएँ, चौदह हजार महामंत्रीश्वर, अठारह करोड़ बड़े बड़े अश्व, पचास करोड़ मशालची, चौरासी लाख महानिशान, नौ निधान, चौदह रत्न, सोलह हजार यक्ष, बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा, वारांगनासहित चौसठ हजार अन्तःपुर और बत्तीस हजार नाटक तथा अन्य भी बहुत से विद्याधर, यक्ष, किन्नरादिक अनेक प्रकार का परिवार चला। भरत ने रणपट्ट मस्तक पर बँधवा कर सुषेण नामक सेनाधिपति को आगे किया। अनुक्रम से बहुली देश की सीमा में जा कर सेना ने छावनी डाली। बाहुबली भी भरत का आगमन सुन कर श्री ऋषभदेवजी की पूजा कर के वज्रबख़्जर पहन कर सारे संसार को तृण के समान मानते हुए भद्र नामक हाथी पर बैठ कर युद्ध के लिए रवाना हुए। उनके पीछे तीन लाख पुत्र तथा पौत्र, बारह हजार राजा तथा अनेक विद्याधर, अनेक योद्धा, हाथी, घोड़े, रथ, पायकप्रमुख सहित चले। बाहुबली ने अपने पुत्र सिंहरथ को सेनापति बना कर सबसे आगे चलाया। वह भी जा कर भरत की सेना से मिला। दोनों सेनाएँ एकत्रित हो जाने से धरती काँपने लगी, समुद्र चलायमान हो गया और पर्वत के शिखर टूट कर गिर पड़े। भरत की सेना में सोलह लाख और बाहुबली की सेना में भी लाखों रणतूर बजने लगे तथा बन्दीजन बिरुदावली बोलने लगे। दोनों सेनाओं का आपस में युद्ध शुरु हुआ। हाथी से हाथी, अश्व से अश्व, विद्याधर से विद्याधर और पैदल से पैदल सैनिक लड़ने लगे। इतने में सुषेण नामक सेनापति ने अपने सामने सिंहरथ को आते देख कर कहा कि मैं तो भरत का चाकर हूँ और तुम बाहुबली के पुत्र होने से